Sunday, March 4, 2012

दिमाग की एक्सरसाइज सूचनाओं को याद रखने में बड़ी मददगार होती हैं.........

आप जो भी याद करने की कोशिश कर रहे हैं , उसे ठीक तरीके से विजुअलाइज करें। सवाल में मौजूद पिक्चर , ग्राफ आदि को दिमाग में बिठाएं। अगर सवाल के अंदर ऐसी कोई पिक्चर नहीं है , तो अपने दिमाग में उस सवाल से संबंधित खुद एक पिक्चर बनाएं। इसके अलावा जो सूचनाएं आप याद करना चाहते हैं , उन्हें किसी चीज के साथ रिलेट कर दें। यह चीज कुछ भी हो सकती है , मसलन कोई घटना , कोई सीन , कोई चुटकुला , कोई दोस्त। एक बच्चे को > < ( ग्रेटर दैन , लेसर दैन) के ये साइन याद रखने में दिक्कत होती थी। उसने खुद एक ट्रिक बनाई। उसने इन दोनों साइन को बंदूक की तरह दिमाग में बिठा लिया। यानी जो बंदूक चला रहा है , वह बड़ा होगा और जिस पर चलाई जा रही है , वह छोटा होगा। इसी तरह केमिस्ट्री के एक स्टूडेंट ने पीरियॉडिक टेबल के एलिमेंट्स को याद करने के लिए छोटे-छोटे मजेदार सूत्र बना लिए। मसलन बेमग के सर बेरे (बेरिलियम , मैग्निशियम , कैल्शियम , स्ट्रॉन्शियम , बेरियम , रेडियम)। इसी तरह 10 नंबरों का कोई फोन नंबर याद रखना चाहते हैं तो उसे टुकड़ों में याद रख सकते हैं। मसलन 9818393146 सीधे याद रखने की बजाय 981-8393-146 के तौर पर याद रखना आसान है। कंफ्यूजन पैदा करने वाले कंसेप्ट को याद रखने के ऐसे और भी आसान तरीके हो सकते हैं।

कभी-कभार अपने पढ़ाई के रुटीन में बदलाव लाकर देखें। अगर पढ़ने की आपकी एक ही जगह है तो कभी किसी और जगह बैठकर पढ़ें। अगर आप ज्यादातर रात में पढ़ते हैं , तो कभी सुबह पढ़कर देखें। ऐसा करने से चीजों को ज्यादा अच्छी तरह याद रख पाएंगे।

जो कंसेप्ट सीखे हैं , उन्हें पक्का करने का सबसे अच्छा तरीका है , उस कंसेप्ट को किसी दूसरे को समझाना। अपने किसी दोस्त को ही पढ़ा दीजिए यह कंसेप्ट। दोस्त भी खुश हो जाएगा और आपकी इस पर ग्रिप भी अच्छी हो जाएगी।

दिमाग की एक्सरसाइज सूचनाओं को याद रखने में बड़ी मददगार होती हैं। दिमाग की एक्सरसाइज के लिए कई काम हैं , जो आप कर सकते हैं। कोई नई भाषा सीखिए , कोई इंस्ट्रूमेंट सीखिए , सुडोकू या पजल हल कीजिए।

जो बच्चे दिन की शुरुआत एक्सरसाइज के साथ करते हैं , उनकी मेमरी बेहतर होती है। कोशिश करें , एक्सरसाइज सुबह के वक्त हो। थोड़ी रनिंग , जॉगिंग , साइक्लिंग काफी फायदेमंद हो सकती हैं। इससे नए बेन सेल्स बनते हैं।

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विवाह जीवन का अहम पड़ाव होता है। इसके बाद लड़के और लड़की दोनों की जिंदगी काफी बदल जाती है। बड़ों से दोनों को ही नए रिश्ते में निबाह करने और सच्च साथी साबित होने के
लिए समझाइशें दी जाती हंै। कोशिश होती है कि दोनों जीवनसाथी इस बदलाव के लिए तैयार हो सकें। लेकिन इन तैयारियों के साथ साथ एक और पहलू पर ध्यान देने की जरूरत है। वह है प्रीमैराइिटल
काउंसलिंग। वैवाहिक जीवन की तैयारी में कुछ जरूरी बातें होती हैं, जो पति पत्नी के मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण असर डाल सकती हैं। काउंसलिंग के दौरान विशेषज्ञ के जवाब जोड़े को सही दिशा देने के साथ साथ आश्वस्त करने में कामयाब होते हैं और युगल भी बेझिझक मन में छिपी शंकाओं का समाधान कर पाते हैं। इस दौरान पता लगाया जा सकता है कि विवाह के समय यदि मासिक की तारीख आ रही है, तो क्या उपाय हो सकता है। संबंध स्थापित करने के बाद किस तरह की साफ सफाई का ख्याल रखना होता है। नव युगल की उम्र व सेहत के लिहाÊा से गर्भ धारण का सही समय क्या हो सकता है या फिर जोड़ा कब तक परिवार शुरू करने के लिए रुक सकता है। सबसे जरूरी यह पता चल जाता है कि कौन सी पद्धति अपनाई जाए, जिससे गर्भ न
ठहरे और भविष्य में भी परेशानी का सामना न करना पड़े। कह सकते हैं, यह सलाह नए नए बने घरौंदे की नींव को मजबूती देने का पहला कदम होता है।


एक वक्त बाद विवाह के कुछ समय बाद जीवन पटरी पर लौट आता है। पति पत्नी दोनों को साझे जीवन का मूल मंत्र समझ में आ जाता है। समान्यतौर पर यही संकेत है एक और
अहम बदलाव का। एक नए जीवन को खुद से जोड़ने का। घर में गूंजती किलकारी सुनने और शिशु में खुद के बचपन की झलकियां पाने को परिवार के कई मन लालायित नजर आते हैं।
पति पत्नी भी अपने जीवन की पूर्णता को पाने का फैसला कर लेते हैं।


इन सजीले सपनों को साकार करने में प्रीकंसेह्रश्वशनल काउंसलिंग की भूमिका अहम हो सकती है। प्री कंसेह्रश्वशनल काउंसलिंग यानी वो जानकारी जो गर्भधारण करने से पहले ले लेनी चाहिए। स्वस्थ शिशु
को जन्म देने और स्वस्थ मां बनने के लिए इस सलाह के काफी मायने हैं। यदि शादी को साल दो साल बीत चुके हैं, तो गर्भधारण करने की तैयारी करने से पहले यह देखना होगा कि परिवार नियोजन के लिए कौन सी पद्धति का सहारा लिया गया था। यदि वे सिर्फ कंडोम का इस्तेमाल कर रहे थे, तब तो कोई बात नहीं। लेकिन यदि कॉन्ट्रासेह्रिश्वटव पिल्स ले रहे थे, तो कम से कम गोली तीन महीने छोड़ने के बाद ही गर्भधारण करना उचित कदम होगा। दूसरी बात, यह जानना जरूरी होगा कि पति पत्नी दानों के परिवारों में कोई वंशानुगत बीमारी तो नहीं है। परिवार में किसी को डायबिटीज, थायरॉइड, लड प्रेशर आदि की समस्या हो, तो गर्भधारण करने के पहले इनकी जांच करना भी जरूरी है। इन सभी बातों का असर गर्भस्थ शिशु पर पड़ सकता है। पति पत्नी का ग्रुप, एच आई वी
और हैपेटाइटिस बी की जानकारी आधुनिक जेन्टर्स में की जाती है।


गहरे हैं मायने इन दोनों सलाहों के मायने गहरे हैं और रिश्तों की मजबूती बनाए रखने और सही दिशा में कदम बढ़ाने में इनका खासा महत्व है। एक समय तक पति पत्नी एक दूसरे को जानना समझना चाहते हैं। लेकिन इसके लिए जोड़े के पास कितना समय है, ये जानना भी महत्वपूर्ण होता है। मां बनने की प्रक्रिया के दौरान और बाद भी एक महिला को कई तरह के शारीरिक और मानसिक
परिवर्तनों के दौर से गुजरना होता है। इसके लिए उसे पूरी तरह से तैयारी करनी होती है। होने वाले पापा को भी अपनी Êिा मेदारियों का भान होना जरूरी है, ताकि वह पत्नी को समझे और सहयोग दे पाए। इसलिए साथियों को हर पहलू पर गौर करने के बाद ही बच्चे को जीवन देने के बारे में फैसला करना चाहिए लेकिन वक्त की अपनी दरकार है। डॉक्टरों के मुताबिक एक निश्चत समयावधि के अंदर गर्भधारण करने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। यदि इसके बाद गर्भधारण करने में कोई परेशानी आए, तो समय रहते उपचार भी शुरू किया जा सकता है।

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थोड़ा ज्यादा कुदरत के लिए भी मायने रखता है। नदी दौड़ती रहती है अपने ही दो तटों के बीच। सबकुछ सामान्य रूप से चलता रहता है। अपनी ही हदों में बंधी नदी सूख भी जाती है। सागर भी ठांठें मारता है। तट के दायरे तोड़ता रहता है, लेकिन फिर भी किनारों से छलक नहीं पाता। उसे भी कुछ नया करने के लिए या होने के लिए चाहिए, कुछ अतिरिक्त, वह एक अलग कदम। आसमान
मेहरबान होता है, तो मेह बरसता है और तब नदी किनारों से ऊपर उठती है। ज्वार के हालात में सागर छलकता है।


ज़िंदगी नए-नए रास्तों पर मुड़ती रहती है। लेकिन जो एक कदम ज्यादा चलते हैं, वे उन मोड़ों से झांक लेते हैं। बादल कभी सफेद होते हैं, तो कभी पानी की बूंदों से भरकर श्याम हो जाते हैं। आसमान को ही नहीं, सूरज को भी ढांप लेते हैं। इनके बीच से वो लोग रोशनी छांट लेते हैं, जो एक नज़र ज्यादा देखने में दिलचस्पी रखते हैं।


एक मुस्कान, एक किरण, एक मौका, एक माफी, एक समझ, एक क्षण, एक मीठा बोल..कुछ ही तो धूप के टुकड़े ज्यादा मांगता है मन का आंगन, खिल जाने के लिए। और ज्यादा जगमगाने के लिए। एक दिन ज्यादा मिलता है चार साल में। एक ज्यादा मुस्कान से, एक कदम से, एक साथ से, चलिए, आज धूप में एक किरण अपनी भी जोड़ दें!

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एग्जाम से पहले होने वाला तनाव जितना कॉमन होता है , उससे बचना उतना ही जरूरी।

पेपर को लेकर अगर स्टूडेंट के मन में चिंता घर कर गई है तो उसके सोचने का तरीका मल्टिडायरेक्शनल हो जाएगा। तमाम तरह की बातें उसके दिमाग में एक साथ चलेंगी और यही चीज उसके अंदर तनाव पैदा करेगी। दूसरी तरफ जब सोचने का तरीका यूनिडायरेक्शनल हो जाता है यानी आप एक ही दिशा में सोच रहे हैं और रिजल्ट ओरिएंटेड सोच रहे हैं तो समस्या का हल निकलता है।

एग्जाम को लेकर लगातार चिंता करते रहने से बच्चों की नींद पर असर होने लगता है और जो भी नींद आती है , उसकी क्वॉलिटी अच्छी नहीं होती। उन्होंने जो याद किया , नींद पूरी न होने से वह भी उन्हें याद नहीं रहेगा।

तमाम स्टूडेंट्स एग्जाम वाली रात को ज्यादा देर तक जागकर पढ़ने की कोशिश करते हैं। उन्हें लगता है कि पूरी रात पढ़कर वे अच्छा रिजल्ट हासिल कर लेंगे , लेकिन यह पूरी तरह से एक धोखा है। रात भर जागने से कभी नंबर अच्छे नहीं आते। दूसरी तरफ उनकी नींद पूरी नहीं होती और सुबह एग्जाम में वे जो कर सकते थे , उसे भी कर पाने की स्थिति में नहीं होते। तय आपको करना है कि सुबह होने वाली एग्जाम की रेस में आप फ्रेश होकर दौड़ना चाहते हैं या फिर रात भरके थके कदमों के साथ। एक्सपर्ट यही सलाह देते हैं कि बच्चे एग्जाम की रात आठ घंटे की गहरी नींद जरूर लें। अगर आप पूरी नींद लेकर एग्जाम देने जा रहे हैं तो हो सकता है कि आप उन सवालों को भी हल कर लें , जिन्हें आपने छह महीने पहले पढ़ा था।

अगर आपने साल भर पढ़ा है तो एग्जाम से पहली रात टेंशन न लें। तानकर सोएं। पेपर अच्छा ही होगा। ऐसा न सोचें कि एक रात पहले अगर नहीं पढ़ा , तो पेपर खराब हो जाएगा।

एग्जाम से पहली रात चिंतारहित होकर थोड़ी देर वॉक करें। हल्का खाना खाएं और वक्त पर सो जाएं। स्कूल के रास्ते में किताब में से बार-बार कुछ देखना या दोस्त से पूछना जैसी बातें बेकार हैं। इससे मन भटकता है। शांत मन से पेपर देने जाएं।

अगर फिर भी किसी को तनाव महसूस हो रहा है तो उसे गहरी लंबी सांसें लेनी चाहिए। इससे मांसपेशियों को आराम मिलता है और विचारों पर ध्यान केंदित करने में मदद मिलती है।

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युवा दंपत्तियों में कलहपूर्ण दाम्पत्य और अशांत गृहस्थी आज आम बात है। पति-पत्नी में वैचारिक तालमेल का अभाव, एक-दूसरे पर अविश्वास और धोखा ये मामले अक्सर देखने में आते हैं। आखिर क्यों हमारे दाम्पत्य अशांत और रिश्ते विश्वास हीन होते जा रहे हैं। इसके लिए कुछ चारित्रिक दोष तो कुछ हमारे वैवाहिक जीवन की शुरुआत जिम्मेदार होती है।

वैवाहिक जीवन की शुरुआत कुछ ऐसी होनी चाहिए, जिसमें हम एक-दूसरे के प्रति अपना भरोसा और समर्पण देख-दिखा सकें। आज के युवा वैवाहिक जीवन और व्यक्तिगत जीवन दोनों को अलग रखना चाहते हैं। इसी की होड़ में रिश्तों की मर्यादाएं टूटती हैं और गृहस्थी का कलह सड़क का तमाशा बन जाता है।

आइए, राम सीता के वैवाहिक जीवन से सीखें कि युवा दम्पत्तियों को कैसे अपनी शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत करनी चाहिए। भगवान राम और सीता का विवाह हुआ। बारात जनकपुरी से अयोध्या आई। भारी स्वागत हुआ। राजमहल में सारी रस्में पूरी की गईं।

भगवान राम और सीता का दाम्पत्य शुरू हुआ। पहली बार भगवान ने पत्नी सीता बातचीत की। बात समर्पण से शुरू हुई। राम ने सीता से पहली बात जो कही वह समर्पण की थी। उन्होंने सीता को वचन दिया कि वे जीवनभर उसी के प्रति निष्ठावान रहेंगे। उनके जीवन में कभी कोई दूसरी स्त्री नहीं आएगी। सीता ने भी वचन दिया, हर सुख और दुख में साथ रहेगी।

पहले वार्तालाप में भरोसे का वादा किया गया। एक-दूसरे के प्रति समर्पण दिखाया। तभी दाम्पत्य दिव्य हुआ। कभी आपसी विवाद नहीं हुए। हमेशा राम सीता के और सीता राम के कल्याण की सोचती थी। व्यक्तिगत अहंकार और रुचियां कभी गृहस्थी में नहीं आए।

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आमतौर पर दूध में 85 फीसदी पानी होता है और बाकी हिस्से में ठोस तत्व यानी मिनरल्स व फैट होता है। बाजार में गाय-भैंस के अलावा विभिन्न कंपनियों का पैकेट वाला दूध मिलता है। दूध प्रोटीन , कैल्शियम और राइबोफ्लेविन (विटामिन बी-2) युक्त तो होता ही है , इसमें विटामिन ए , डी , के और ई समेत फॉस्फोरस , मैग्नीशियम , आयोडीन समेत कई मिनरल और फैट तथा एनर्जी भी होती है। इसके अलावा इसमें कई एंजाइम और लिविंग ब्लड सेल्स भी मिलते हैं। डाइटिशियंस की मानें तो ये सब पोषक तत्व हमारी मांसपेशियों और हड्डियों के गठन में अहम भूमिका निभाते हैं। प्रोटीन ऐंटिबॉडीज के रूप में काम करता है और हमें इन्फेक्शन से बचाता है।

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किसी गांव में दो भाई रहते थे। बडे़ की शादी हो गई थी। उसके दो बच्चे भी थे। लेकिन छोटा भाई अभी कुंवारा था। दोनों साझा खेती करते थे। एक बार उनके खेत में गेहूं की फसल पककर तैयार हो गई। दोनों ने मिलकर फसल काटी और गेहूं तैयार किया। इसके बाद दोनों ने आधा-आधा गेहूं बांट लिया। अब उन्हें ढोकर घर ले जाना बचा था। रात हो गई थी इसलिए यह काम अगले दिन ही हो पाता। रात में दोनों को फसल की रखवाली के लिए खलिहान पर ही रुकना था। दोनों को भूख भी लगी थी। दोनों ने बारी-बारी से खाने की सोची।

पहले बड़ा भाई खाना खाने घर चला गया। छोटा भाई खलिहान पर ही रुक गया। वह सोचने लगा- भैया की शादी हो गई है, उनका परिवार है इसलिए उन्हें ज्यादा अनाज की जरूरत होगी। यह सोचकर उसने अपने ढेर से कई टोकरी गेहूं निकालकर बड़े भाई वाले ढेर में मिला दिया। बड़ा भाई थोड़ी देर में खाना खाकर लौटा। उसके बाद छोटा भाई खाना खाने घर चला गया। बड़ा भाई सोचने लगा - मेरा तो परिवार है, बच्चे हैं, वे मेरा ध्यान रख सकते हैं। लेकिन मेरा छोटा भाई तो एकदम अकेला है, इसे देखने वाला कोई नहीं है। इसे मुझसे ज्यादा गेहूं की जरूरत है। उसने अपने ढेर से उठाकर कई टोकरी गेहूं छोटे भाई वाले गेहूं के ढेर में मिला दिया! इस तरह दोनों के गेहूं की कुल मात्रा में कोई कमी नहीं आई। हां, दोनों के आपसी प्रेम और भाईचारे में थोड़ी और वृद्धि जरूर हो गई।

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