लाइबेरिया की राष्ट्रपति एलेन जॉनसनसरलीफ , वहीं की शांति कार्यकर्ता लीमा बोवी औरयमन की तानाशाही विरोधी आंदोलनकारी तवक्कुलकारमन को इस बार संयुक्त रूप से नोबेल शांतिपुरस्कार से नवाजा गया है।
यह स्त्री शक्तिका भी सम्मान है , जिसकी नई - नई छवियां दुनिया के अलग - अलग समाजों में सर्वोच्चस्थान हासिल कर रही हैं। अरब दुनिया और उत्तरी अफ्रीकी समाजों की स्थिति इस मामले मेंसबसे कमजोर रही है , और ये तीनों महिलाएं संयोगवश इसी क्षेत्र से आती हैं। इनके बीच तुलनाकरनी हो तो सबसे लंबे संघर्ष का श्रेय लीमा बोवी को जाता है।
लाइबेरिया में 2003 तक चले लंबे गृहयुद्ध का जब कोई समाधान नहीं निकल रहा था तो प्रतिरोधके एक अभूतपूर्व नारीवादी रूप का सृजन करते हुए उन्होंने लड़ाई में शामिल सारे पुरुषों की स्त्रीसहभागियों से - याहे वे पत्नी हों या गर्लफ्रेंड - सेक्स स्ट्राइक पर जाने का आह्वान किया था।बाकी दुनिया के लिए यह भले ही हंसी - मजाक की बात रही हो , लेकिन लगातार युद्ध कीविभीषिका झेल रही लाइबेरियाई स्त्रियों ने इस आह्वान को इतनी गंभीरता से लिया कि वहां चलरही लड़ाई की आग पर देखते - देखते घड़ों पानी पड़ गया।
यमन की पत्रकार तवक्कुल कारमन को मात्र 32 साल की उम्र मेंमदर ऑफ रेवॉल्यूशन कहा जाने लगा है और उन्हें मिले पुरस्कार को अरब देशों में चल रहीवसंती बयार का सम्मान समझा जा सकता है। यह बात और है कि यमन के तानाशाही विरोधीआंदोलन में उनकी स्थिति निर्विवाद नहीं है , और इजिप्ट की चर्चित आंदोलनकारी अस्मा महफूजके बजाय पुरस्कार के लिए उन्हें चुना जाना किसी और चीज से ज्यादा नोबेल चयन समिति कीकूटनीतिक भंगिमा का परिचायक है। पिछले साल चीन के ल्यू श्याओपो को पुरस्कृत करने कानतीजा यह हुआ कि चीन के जवाबी कदम से नॉर्वे को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।जाहिर है , इस बार अरब स्प्रिंग के साथ खड़ी दिखते हुए भी समिति ऐसा कुछ नहीं करना चाहतीथी , जिससे उसे तेल समृद्ध अरब देशों का कोप झेलना पड़े।
यह स्त्री शक्तिका भी सम्मान है , जिसकी नई - नई छवियां दुनिया के अलग - अलग समाजों में सर्वोच्चस्थान हासिल कर रही हैं। अरब दुनिया और उत्तरी अफ्रीकी समाजों की स्थिति इस मामले मेंसबसे कमजोर रही है , और ये तीनों महिलाएं संयोगवश इसी क्षेत्र से आती हैं। इनके बीच तुलनाकरनी हो तो सबसे लंबे संघर्ष का श्रेय लीमा बोवी को जाता है।
लाइबेरिया में 2003 तक चले लंबे गृहयुद्ध का जब कोई समाधान नहीं निकल रहा था तो प्रतिरोधके एक अभूतपूर्व नारीवादी रूप का सृजन करते हुए उन्होंने लड़ाई में शामिल सारे पुरुषों की स्त्रीसहभागियों से - याहे वे पत्नी हों या गर्लफ्रेंड - सेक्स स्ट्राइक पर जाने का आह्वान किया था।बाकी दुनिया के लिए यह भले ही हंसी - मजाक की बात रही हो , लेकिन लगातार युद्ध कीविभीषिका झेल रही लाइबेरियाई स्त्रियों ने इस आह्वान को इतनी गंभीरता से लिया कि वहां चलरही लड़ाई की आग पर देखते - देखते घड़ों पानी पड़ गया।
यमन की पत्रकार तवक्कुल कारमन को मात्र 32 साल की उम्र मेंमदर ऑफ रेवॉल्यूशन कहा जाने लगा है और उन्हें मिले पुरस्कार को अरब देशों में चल रहीवसंती बयार का सम्मान समझा जा सकता है। यह बात और है कि यमन के तानाशाही विरोधीआंदोलन में उनकी स्थिति निर्विवाद नहीं है , और इजिप्ट की चर्चित आंदोलनकारी अस्मा महफूजके बजाय पुरस्कार के लिए उन्हें चुना जाना किसी और चीज से ज्यादा नोबेल चयन समिति कीकूटनीतिक भंगिमा का परिचायक है। पिछले साल चीन के ल्यू श्याओपो को पुरस्कृत करने कानतीजा यह हुआ कि चीन के जवाबी कदम से नॉर्वे को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।जाहिर है , इस बार अरब स्प्रिंग के साथ खड़ी दिखते हुए भी समिति ऐसा कुछ नहीं करना चाहतीथी , जिससे उसे तेल समृद्ध अरब देशों का कोप झेलना पड़े।
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