Thursday, September 24, 2009

कुछ ख़ास .....

अलग तेलुगू राज्य की मांग को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद १९५३ में पहली बार भाषाई आधार पर आंध्रप्रदेश राज्य का गठन किया गया।

सन् १९५४ में शीत युद्ध के दौर से गुजर रहे विश्व के समक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गुटनिरपेक्षता का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसे बाद में यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो, इंडोनेशिया के सुकर्णो और मिस्त्र के गमाल अब्दुल नासिर ने अंगीकार करते हुए गुटनिरपेक्ष आंदोलन को जन्म दिया।

१९६८ में टाटा कन्सल्टन्सी सर्विसिज़ की स्थापना से भारत सुचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नई ऊँचाई पर पहुँच गया ।

१९ जुलाई, १९६९ को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया, और लगभग ४०० रजवाड़ों को आजादी के समय से ही मिल रहे खैरात (प्रिवी पर्स) को बंद कर दिया।

१९७३ में उत्तराखंड राज्य के कुछ ग्राम वासियों ने वनों को काटने से बचाने के लिए एक अनोखे आंदोलन आरंभ किया, जिसमें वे पेड़ से चिपक जाते थे।

Monday, September 21, 2009

तक्षशिला ....


पकिस्तान के रावलपिंडी में तक्षशिला प्राचीनकाल में शिक्षा के प्रमुख केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध था । बौध साहित्य के अनुसार धनुर्विद्या और वैद्य शिक्षा के लिए विश्वविख्यात इसी केन्द्र से चंदगुप्त मौर्य ने सैन्य शिक्षा ग्रहण की थी । इस नगर को जैन धर्म का तीर्थ स्थल भी कहा गया है ।'' पुरातन प्रबंध संग्रह'' में यहाँ के १०५ जैन स्थलों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है । कौशल के राजा प्रसेनजित ,मगध का राजवैद जीवक ,प्रसिद्ध राजनितिज्ञ चाणक्य व बौध विद्वान् वसुबन्धु ने यहीं पर शिक्षा प्राप्त किया था । चीनी यात्री हुएनसांग के भारत आगमन के समय यह केन्द्र उजाड़ हो गया था । इसे विश्व का प्रथम विश्विद्यालय मन जाता है । तक्षशिला गंधार महाजनपद की राजधानी भी थी । इसे यूनेस्को ने विश्व विरासत की सूचि में भी शामिल किया है ।

कोणार्क का सूर्य मन्दिर



उडीसा में पुरी से ३३ किलोमीटर दूर समुद्र तट पर स्थित कोणार्क सूर्यमंदिर के लिए विख्यात है । इस मन्दिर का निर्माण अबुल फजल के अनुसार केशरी वंशी राजा ने नवीं शताब्दी में किया था । गंगवंशीय राजा नरसिंह देव प्रथम द्वारा तेरहवीं शताब्दी में इस मन्दिर को नविन रूप दिया गया । चतुर्भुजाकार परकोटे पर स्थित यह मन्दिर वास्तुकला की दृष्टि से श्रेष्ठ और अन्य मंदिरों से भिन्न है । मन्दिर के गर्भगृह में पशु पक्षियों ,किन्नरों ,गन्धर्वों ,देवी देवताओं तथा अप्सराओं की विभिन्न मूर्तियाँ आज भी विद्यमान है । मन्दिर की मूर्तियों में खजुराहो शैली की झलक दिखायी देती है ।

Friday, September 18, 2009

अपनों की खोज ..

अपना ब्लौग लाने की ज़रूरत क्या थी? इतनी मशहूर तो नहीं....सच मानिये..केवल अपने उन लिखने-लिखाने वाले साथियों की खोज के लिये जो पता नहीं कहां बिछड गये.... शायद कुछ मिल जायें इस ब्लौग के ज़रिये...
.......ये पंक्तियाँ है , वंदना अवस्थी जी के ब्लॉग ''अपनी बात'' की .....सच ! साथियों की खोज के लिए ही तो ब्लोगिंग शुरू हुई जो हिन्दी से नाता तोड़ कहीं गुम हो चुके है । हमें उन्हें न सिर्फ़ खोज लाना है बल्कि उन्हें उचित स्थान भी देना है ..और सुबह के भूले हुए को माफ़ भी कर देना है । बिछडे जब मिलते है तो गंगा बहती है ....और गंगा का बहना शुभ माना जाता है ।
अगर हम भी कहीं भटक जाय तो हमें अपने आप को भी खोज लाना है ....सच मानिये अपने आप को खोजना बहुत मुश्किल काम है, पर यह संभव है ..तो आइये मिलकर खोजना शुरू कर देते है ....अब देर करना ठीक नही....

Thursday, September 3, 2009

जीवन का अर्थ ......

धन ही सबकुछ नही ....जीवन में और भी बहुत कुछ है कमाने के लिए ....धन तो एक अदना सा हिस्सा है । धन कुछ हो सकता है ,पर सबकुछ तो कभी भी नही । केवल पैसा ही जीवन को खुशियों से नही भर सकता ..खुशियाँ कमाने के और भी बहुत सारे रास्ते है । धन आनंद का स्रोत नही ...अगर ऐसा होता तो हर धनवान के घर लक्ष्मी के साथ साथ सरस्वती भी निवास करती और उसके जीवन में कोई समस्या भी नही होती ।
इतिहास उनको याद करता है ,जो दूसरो के लिए कुछ करते हुए मर गए ....उन्ही की स्मृति दिमाग में कौतुहल पैदा करती है ,न की उनकी जिन्होंने अपना जीवन पैसे कमाने में और दूसरो को चूसने में लगा दिया । आज पैसे का बोलबाला है ..सही भी है , पर एक हद तक ....मूर्खों की तरह केवल पैसे लूटने के चक्कर में हम जीवन का मूल उद्देश्य भूल जाते है ....जीवन के अंत में कुछ हासिल नही कर पाते ।
कुछ लोग जन्म लेते है ..रूपया कमाते है और परलोक की यात्रा पर निकल जाते है ..ऐसे लोगों को इतिहास याद नही करता .....इतिहास ऐसे लोगों को याद करता है जिन्होंने इस जगत को कुछ दिया हो । हम उन महानुभावों को याद करते है ,जिन्होंने स्वार्थ की उपासना नही की .............. ।