आज, जब मै अपने रूम से निकला तो देखा की एक कुत्ता एक कूड़ा उठाने वाले पर जोर जोर से भौंक रहा है । वह बहुत जोर से भौक रहा था .....ऐसा लगा उसने अपनी पुरी शक्ति लगा दी हो । बेचारा कूडे वाला उसकी तो जान ही अटक गई थी । दो तिन और कुत्तें वही बैठे हुए थे । वे सब ऊँघ रहे थे । उनको कोई फर्क नही पड़ा की उनका एक साथी कुछ कर रहा है । मुझे यह देख घोर आर्श्चय हुआ । गाँव याद आ गया । गाँव में अगर किसी एक मुद्दें को लेकर कोई कुत्ता भौकना शुरू करता था तो मजाल है की उसके आस पास के कुत्तें चुप रहे । वे तुंरत यूनिटी दिखाते हुए साथ देने लगते ।
आज सोचता हूँ की इंसान शहरी होकर एक दुसरे के साथ मिलना जुलना ,दुःख दर्द में शरीक होना तो छोड़ ही चुका है .....इसका असर शहरी कुत्तों पर भी पड़ा है ,तभी तो वे उस यूनिटी को भूल चुके है जो कभी उनकी विरासत रह चुकी है । मै इसे सोचते सोचते आगे बढ़ गया ..... लड्डू चलो चुपचाप...... आगे अभी बहुत से बदलाव देखने है । एक दिन तो इंसानियत को भी ख़त्म होते देखना है .....तब मुझे लगा की ये तो एक छोटी सी बात है और मेरे कदम आगे बढ़ गए ।
Saturday, June 27, 2009
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2 comments:
इंसान शहरी होकर एक दुसरे के साथ मिलना जुलना ,दुःख दर्द में शरीक होना तो छोड़ ही चुका है .....इसका असर शहरी कुत्तों पर भी पड़ा है ,तभी तो वे उस यूनिटी को भूल चुके है जो कभी उनकी विरासत रह चुकी है । मै इसे सोचते सोचते आगे बढ़ गया ..... लड्डू चलो चुपचाप...... आगे अभी बहुत से बदलाव देखने है । एक दिन तो इंसानियत को भी ख़त्म होते देखना है .....तब मुझे लगा की ये तो एक छोटी सी बात है और .....
सत्य वचन. गहरी अभिव्यक्ति.
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत सुंदर लिखा है आपने ! आज के ज़माने में इंसान बहुत स्वार्थी हो गया है! सिर्फ़ अपने बारे में सोचते हैं, किसीके दुःख में शामिल नहीं होते, अपने आप में ही व्यस्त रहते हैं, किसीके साथ बात करना पसंद नहीं करते इत्यादि ऐसी काफी बातें है जिससे मन को बरा ठेस पहुँचता है!
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