Sunday, November 22, 2009

समुद्रगुप्त ..

समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है । वह अपनी जिंदगी में कभी भी पराजित नही हुआ । उसका विजय अभियान भारत के हर क्षेत्र में कामयाब रहा । प्रथम आर्यावर्त के युद्ध में उसने तीन राजाओं को हराकर अपने विजय अभियान की शुरुआत की । इसके बाद दक्षिणापथ के युद्ध में दक्षिण के बारह राजाओं को पराजित कर उन्हें अभयदान दिया । यह उसकी दूरदर्शी निति का ही परिणाम था ,वह दक्षिण के भौगोलिक परिस्थितियों को भलीभांति समझता था । आर्यावर्त के द्वितीय युद्ध में उसने नौ राजाओं को हरा कर उन्हें अपने साम्राज्य में मिला लिया । बाद में उसने सीमावर्ती राजाओं और कई विदेशी शक्तियों को भी पराजित कर अपनी शक्ति का लोहा मानने पर मज़बूर कर दिया।

समुद्रगुप्त ही गुप्त वंश का वास्तविक निर्माता था । उसका प्रधान सचिव हरिसेन ने प्रयाग प्रशस्ति की रचना की जिसमे समुद्रगुप्त के विजयों के बारें में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । समुद्रगुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ भी करवाया । वह वीणा बजाने में भी कुशल था । उसके दरबार में बुधघोष जैसे विद्वान् आश्रय पाते थे ।

Saturday, November 14, 2009

तेरी याद को कहीं दूर छोड़ आऊँ मै......




यादें ....उफ्फ ये यादें । ज़िन्दगी भर का दर्द ...और गम । कभी दिन के उजालें में तो कभी रात के अन्धेरें में । कभी मेले में तो कभी वीराने में हलचल ...
उफ्फ ये यादें .....मानो जीवन भर साथ निभाने का ठेका ले रखा है ।
क्या करूँ ...अब तो इस बेचारे पर उसे दया भी नही आती ।
सच ! सोच कर ही काँप जाता हूँ ....उफ्फ ये यादें ।

किस्मत सो गई .... आखे थक गई । अब जाओ ..... मै भी जा चुका । अब मुझे तन्हा रहने दो । मुझे मजाक बनने दो .... तुमसे कोई शिकायत नही । गलती मेरी है । इतना चाहा । सारा जीवन दे दिया । अब मेरी शाम आ गई है तो तुम भी ...
पागल था । तेरी मुस्कुराहटों का । जागता था रातभर तुमको यादकर ..... तुमने अपनी अदाओं से जादू कर दिया ।
मै खिचता चला गया । तू मेरी मंजील थी । अब मै क्या राहें भी थक गई पर तेरा दर्शन नही हुआ । अब मै जा रहा हूँ ...... सबको छोड़कर ।

बेफिक्री से जीना चाहता हूँ । कुछ हाथ नही लगने पर भी मस्त रहना चाहता हूँ ।
क्या यह वश में है ?.......शायद !
अबूझ पहेली तो नही हूँ ,शायद उतनी योग्यता भी नही है । सच कहूँ ...मै अबूझ बन कर रहना भी नही चाहता ।
पहेली बुझाने या बुझने में मजा नही आता । खुले विचारों की कद्र करता हूँ ।
जिंदगी को एक पहेली नही बनाना चाहता । क्या यह वश में है ?......शायद !

अन्दर तो छोडिये साब ...छत पर लेट कर भी कोई समाधान नही खोज पता । इसे जड़ता नही कहा जाए तो और क्या ?हालत तो ऐसी है की जब अपनी ही पीडाओं का पता नही तो दूसरों ......!
अभी भी रोटी के संघर्ष को नही जान पाया । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......
घर और मुल्क की गरीबी का कोई प्रभाव नही पड़ा । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......

Tuesday, November 10, 2009

अशोक के लघु स्तम्भ लेख ....

सम्राट अशोक की राजकीय घोषणाएँ जिन स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं उन्हें लघु स्तम्भ लेख कहा जाता है जो निम्न स्थानों पर स्थित हैं-

१. सांची- मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में है ।

२. सारनाथ- उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में है ।

३. रूभ्मिनदेई- नेपाल के तराई में है ।

४. कौशाम्बी- इलाहाबाद के निकट है ।

५. निग्लीवा- नेपाल के तराई में है ।

६. ब्रह्मगिरि- यह मैसूर के चिबल दुर्ग में स्थित है ।

७. सिद्धपुर- यह ब्रह्मगिरि से एक मील उ. पू. में स्थित है ।

८. जतिंग रामेश्‍वर- जो ब्रह्मगिरि से तीन मील उ. पू. में स्थित है ।

९. एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है ।

१०. गोविमठ- यह मैसूर के कोपवाय नामक स्थान के निकट है ।

११. पालकिगुण्क- यह गोविमठ की चार मील की दूरी पर है ।

१२. राजूल मंडागिरि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है ।

१३. अहरौरा- यह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है ।

१४. सारो-मारो- यह मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में स्थित है ।

१५. नेतुर- यह मैसूर जिले में स्थित है ।

Saturday, November 7, 2009

अशोक के १४ शिलालेख....

अशोक के १४ शिलालेख विभिन्‍न लेखों का समूह है जो आठ स्थानों से प्राप्त किए गये हैं-

(१) धौली- यह उड़ीसा के पुरी जिला में है ।

(२) शाहबाज गढ़ी- यह पाकिस्तान (पेशावर) में है ।

(३) मान सेहरा- यह हजारा जिले में स्थित है ।

(४) कालपी- यह वर्तमान उतराखंड (देहरादून) में है ।

(५) जौगढ़- यह उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है ।

(६) सोपरा- यह महराष्ट्र के थाणे जिले में है ।

(७) एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित है ।

(८) गिरनार- यह काठियावाड़ (गुजरात ) में जूनागढ़ के पास है ।

Wednesday, November 4, 2009

उम्मीद ...

अन्दर तो छोडिये साब ...छत पर लेट कर भी कोई समाधान नही खोज पता । इसे जड़ता नही कहा जाए तो और क्या ?हालत तो ऐसी है की जब अपनी ही पीडाओं का पता नही तो दूसरों ......!
अभी भी रोटी के संघर्ष को नही जान पाया । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......
घर और मुल्क की गरीबी का कोई प्रभाव नही पड़ा । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......
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कहने को तो ..... नीला आसमान मेरे चारो तरफ़ लहरा रहा है । पर मेरे लिए एक मुठ्ठी भर भी नही बचा ।
चाहत तो एक मुठ्ठी भर आसमाँ की ही थी । वह भी मुअस्सर नही ।
सूरज की किरणे मुझ पर भी वैसे ही पड़ती है , जैसे दूसरो पर गिरती है । अफ्शोश !मुझमे गर्मी पैदा करने की
ताकत उसमे नही ।
कौन जानता ...मै वह अन्धकार बन गया हूँ , जिसपर उजाले का कोई असर नही ।
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आकाश को देख रहा हूँ । कोई छोर नही दीखता । इतना फैला हुआ है ...... डर लग लगता है ।
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा ।
फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है ।

Sunday, November 1, 2009

मांसाहार ...

एक बार भगवान बुद्ध ने अपने भिक्षुओं को उपदेश देते हुए कहा कि भिक्षा पात्र में जो कुछ प्राप्त हो जाए, वही ग्रहण कर लेना चाहिए। दैवयोग से एक दिन एक भिक्षु के पात्र में चील ने एक मांस का टुकड़ा डाल दिया। इस पर भिक्षु ने भगवान बुद्ध से पूछा, तो भगवान बुद्ध ने सामान्य भाव से कह दिया कि इसे ग्रहण कर लीजिए। परंतु इस का परिणाम भविष्य में यह हुआ कि लोग भगवान बुद्ध के उस वाक्य को पकड़कर मांसाहार करने लगे।

Monday, October 19, 2009

अभी भी कुछ रोशनी बाकी है ......

भारत ग्लोबल वॉर्मिन्ग के लिहाज से हॉट स्पॉट है और इस वजह से यहां बाढ़, सूखा और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ सकती हैं। एशिया में भारत के अलावा पाकिस्तान, अफगानिस्तान और इंडोनेशिया उन देशों में शामिल हैं, जो अपने यहां चल रही राजनैतिक, सामरिक, आर्थिक प्रक्रियाओं के कारण ग्लोबल वॉर्मिन्ग से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।
किसी भी प्राकृतिक आपदा का प्रभाव कई कारकों के आधार पर मापा जाता है। मसलन सही उपकरणों और सूचना तक पहुंच और राहत और उपाय के लिए प्रभावी राजनैतिक तंत्र। कई बार इनका प्रभावी तरीके से काम न करना आपदा से प्रभावित होने वाले हाशिए पर पड़े लोगों की जिंदगी और भी बदतर कर देता है।
मौसम में बदलाव के कारण ज्यादा बड़े स्तर पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए प्रभावी तंत्र बनाया जाए, नही तो तबाही और ज्यादा होगी। घनी आबादी वाले और खतरे की आशंका से जूझ रहे इलाकों में सरकारी तंत्र और स्थानीय लोगों को सुविधाएं और प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि आपदा के बाद पुनर्वास के दौरान तेजी बनी रहे और काम की निगरानी भी हो।

हमारी पर्यावरण चिंताओं पर यह निराशावादी सोच इतनी हावी होती जा रही है कि अब यह कहना फैशन बन गया है कि जनसंख्या यूं ही बढ़ती रही तो 2030 तक हमें रहने के लिए दो ग्रहों की जरूरत होगी।
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कई अन्य संगठन इस फुटप्रिंट को आधार बनाकर जटिल गणनाएं करते रहे हैं। उनके मुताबिक हर अमेरिकी इस धरती का 9।4 हेक्टेयर इस्तेमाल करता है। हर यूरोपीय व्यक्ति 4.7 हेक्टेयर का उपयोग करता है। कम आय वाले देशों में रहने वाले लोग सिर्फ एक हेक्टेयर का इस्तेमाल करते हैं। कुल मिलाकर हम सामूहिक रूप से 17.5 अरब हेक्टेयर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से हम एक अरब इंसानों को धरती पर जीवित रहने के लिए 13.4 हेक्टेयर ही उपलब्ध है।
सभी तरह के उत्सर्जन में 50 फीसदी की कटौती से भी हम ग्रीन हाउस गैसों को काफी हद तक कम कर सकते हैं। एरिया एफिशियंशी के लिहाज से कार्बन कम करने के लिए जंगल उगाना बहुत प्रभावी उपाय नहीं है। इसके लिए अगर सोलर सेल्स और विंड टर्बाइन लगाए जाएं, तो वे जंगलों की एक फीसदी जगह भी नहीं लेंगे। सबसे अहम बात यह है कि इन्हें गैर-उत्पादक क्षेत्रों में भी लगाया जा सकता है। मसलन, समुद में विंड टर्बाइन और रेगिस्तान में सोलर सेल्स लगाए जा सकते हैं।
जर्नल 'साइंस' में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत तीसरी दुनिया के अधिकांश देशों को तेजी से बढ़ती जनसंख्या और उपज में कमी की वजह से खाद्य संकट का सामना करना पड़ेगा। तापमान में बढ़ोतरी से जमीन की नमी प्रभावित होगी, जिससे उपज में और ज्यादा गिरावट आएगी। इस समय ऊष्ण कटिबंधीय और उप-ऊष्ण कटिबंधीय इलाकों में तीन अरब लोग रह रहे हैं।एक अनुमान के मुताबिक 2100 तक यह संख्या दोगुनी हो जाएगी। रिसर्चरों के अनुसार, दक्षिणी अमेरिका से लेकर उत्तरी अर्जेन्टीना और दक्षिणी ब्राजील, उत्तरी भारत और दक्षिणी चीन से लेकर दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया और समूचा अफ्रीका इस स्थिति से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्ष 2050 तक ग्लेशियरों के पिघलने से भारत, चीन, पाकिस्तान और अन्य एशियाई देशों में आबादी का वह निर्धन तबका प्रभावित होगा जो प्रमुख एवं सहायक नदियों पर निर्भर है।

आईपीसीसी की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2005 में बिजली सप्लाई के दूसरे ऊर्जा विकल्पों की तुलना में न्यूक्लियर पावर का योगदान 16 प्रतिशत है , जो 2030 तक 18 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। इससे कार्बन उत्सर्जन की कटौती के काम में काफी मदद मिल सकती है , पर इसके रास्ते में अनेक बाधाएं हैं - जैसे परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा की चिंता , इससे जुड़े एटमी हथियारों के प्रसार का खतरा और परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले एटमी कचरे के निबटान की समस्या।
अगर एटमी ऊर्जा का विकल्प ऐसे देशों को हासिल हो गया , जिनका अपने एटमी संयंत्रों पर पूरी तरह कंट्रोल नहीं है , तो यह विकल्प काफी खतरनाक हो सकता है। ऐसी स्थिति में वे सिर्फ खुद बड़ी मात्रा में परमाणु हथियार बनाकर दुनिया के लिए बड़ी भारी चुनौती खड़ी कर सकते हैं और आतंकवादी भी इसका फायदा उठा सकते है ।

आज दुनिया एटमी कचरे के पूरी तरह सुरक्षित निष्पादन का तरीका नहीं खोज पाई है। इसका खतरा यह है कि अगर किसी वजह से इंसान उस रेडियोधर्मी कचरे के संपर्क में जाए , तो उनमें कैंसर और दूसरी जेनेटिक बीमारियां पैदा हो सकती हैं। इन स्थितियों के मद्देनजर जो लोग ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के सिलसिले में एटमी एनर्जी को एक समाधान के रूप में देखने के विरोधी हैं , वे अक्सर अक्षय ऊर्जा के दूसरे स्रोतों को ज्यादा आकर्षक और सुरक्षित विकल्प बताते हैं।
एटमी एनर्जी कोई सरल - साधारण हल नहीं हो सकती , क्योंकि एक न्यूक्लियर प्लांट को चलाने के लिए बहुत ऊंचे स्तर की तकनीकी दक्षता , नियामक संस्थानों और सुरक्षा के उपायों की जरूरत पड़ती है। यह भी जरूरी नहीं है कि ये सभी जगह एक साथ मुहैया हो सकें। इसकी जगह अक्षय ऊर्जा के विकल्पों में सार्वभौमिकता की ज्यादा गुंजाइश है , पर इनमें भी कुछ चीजों की अनिवार्यता अड़चन डालती है। उदाहरण के लिए सौर ऊर्जा या पवन ऊर्जा की क्षमता वहां हासिल नहीं की जा सकती , जहां सूरज की किरणें और हवा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हों। जिन देशों में साल के आठ महीने सूरज के दर्शन मुश्किल से होते हों , वहां सौर ऊर्जा का प्लांट लगाने से कुछ हासिल नहीं हो सकता। इसी तरह पवन ऊर्जा के प्लांट ज्यादातर उन इलाकों में फायदेमंद साबित हो सकते हैं , जो समुद्र तटों पर स्थित हैं और जहां तेज हवाएं चलती हैं।

किसी भी देश को अपने लिए ऊर्जा के सभी विकल्पों को आजमाना होगा और अगर उसके लिए ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन महत्वपूर्ण मुद्दा है , तो उसे अक्षय ऊर्जा बनाम एटमी ऊर्जा के बीच सावधानी से चुनाव करना होगा। यह स्वाभाविक ही है कि एटमी एनर्जी को लेकर कायम चिंताओं के बावजूद अगले पांच वर्षों में इसमें उल्लेखनीय इजाफा हो सकता है। बिजली पैदा करने वाले ताप संयंत्र ( थर्मल प्लांट ) भारी मात्रा में कार्बन डाइ - ऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं , जबकि उनकी तुलना में एटमी संयंत्र क्लीन एनर्जी का विकल्प देते हैं। उनसे पर्यावरण प्रदूषण का कोई प्रत्यक्ष खतरा नहीं है। आज दुनिया जिस तरह से क्लीन एनर्जी के विकल्प आजमाने पर जोर दे रही है , उस लिहाज से भी भविष्य परमाणु संयंत्रों से मिलने वाली बिजली का ही है। परमाणु संयंत्रों से मिलने वाली बिजली काफी सस्ती भी पड़ सकती है
सरकार और प्राइवेट सेक्टर को अक्षय ऊर्जा के मामले में शोध और डिवेलपमंट पर भारी निवेश करने की जरूरत है। इससे अक्षय ऊर्जा की लागत में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकेगी। आज की तारीख में कार्बन उत्सर्जन की कीमत पर अक्षय ऊर्जा प्राप्त करने की लागत एटमी एनर्जी की तुलना में काफी ज्यादा है।

ऑस्ट्रेलिया के पास मौजूद पापुआ न्यूगिनी का एक पूरा द्वीप डूबने वाला है। कार्टरेट्स नाम के इस आइलैंड की पूरी आबादी दुनिया में ऐसा पहला समुदाय बन गई है जिसे ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अपना घर छोड़ना पड़ रहा है - यानी ग्लोबल वॉर्मिंग की पहली ऑफिशल विस्थापित कम्युनिटी। जिस टापू पर ये लोग रहते हैं वह 2015 तक पूरी तरह से समुद्र के आगोश में समा जाएगा।
ऑस्ट्रेलिया की नैशनल टाइड फैसिलिटी ने कुछ द्वीपों को मॉनिटर किया है। उसके अनुसार यहां के समुद्र के जलस्तर में हर साल 8।2 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हो रही है। ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ने के साथ यह समस्या और बढ़ती जाएगी। कार्टरेट्स के 40 परिवार इसके पहले शिकार हैं।

इस तरह हमें ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को काफी गंभीरता से लेना होगा । क्योटो प्रोटोकाल के बाद आने वाले प्रोटोकाल में इसके लिए पुख्ता इंतजाम किया जाना चाइये ताकि कोई भी अपनी जिम्मेदारी से बच नही सके । भारत सरकार को भी अपने स्टार से जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए । हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ नही कर सकते अगर करते है तो आने वाली जेनेरेशन को जवाब देना पड़ेगा । अभी समय है और समय रहते ही त्वरित उपाय करने होंगे नही तो परिणाम भयंकर हो सकते है ।

Wednesday, October 14, 2009

सम्राट अशोक

अशोक एक महान कल्याणकारी शासक था । गिरनार अभिलेख के अनुसार उसने पशु पक्षियों के लिए भी चिकित्सालयों का निर्माण करवाया । अपने पहले शिलालेख में वह कहता है की मैंने पशु बलि पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है , निश्चित ही पशुओं और पक्षियों की हत्या पर अंकुश लगा होगा । शान्ति और अहिंसा की निति के अनुसरण का यह प्राचीनतम उदाहरण मिलता है । प्राचीनकाल में ऐसी सोच किसी और शासक की नही हो सकी । अशोक द्वारा दिखाए गए मार्ग पर आज की सरकारें चलने की कोशिश कर रही है । भारतीय संबिधान में भी अशोक की शिक्षाओं को स्थान दिया गया है तथा सत्यमेव जयते को राष्ट्रीय कथन माना गया है । अशोक द्वारा बताये हुए रास्ते का ही अनुसरण कर महात्मा गाँधी ने सत्य व अहिंसा को आजादी की लड़ाई में प्रमुख हथियार बनाया ।
१३ वें शिलालेख में कलिंग युद्ध का वर्णन है जिसके बाद अशोक ने युद्ध विजय को त्याग कर धम्म विजय की यात्रा शुरू की । न केवल मानव मात्र के कल्याण के लिए सोचा बल्कि पशु पक्षियों के कल्याण के सम्बन्ध में भी सोचा । ऐसा लगता है की अशोक प्रकृति के अधिक निकट था । आज हम केवल मानवाधिकार की बात करते है और पशु अधिकारों की नही जबकि अशोक ने उस समय ही पशु अधिकारों के सम्बन्ध में कानून का निर्माण किया था । आज अशोक इसलिए महान है की उसने मानव कल्याण के लिए जो कुछ सोचा उसपर पुरे मनोयोग से काम किया ।

Thursday, September 24, 2009

कुछ ख़ास .....

अलग तेलुगू राज्य की मांग को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद १९५३ में पहली बार भाषाई आधार पर आंध्रप्रदेश राज्य का गठन किया गया।

सन् १९५४ में शीत युद्ध के दौर से गुजर रहे विश्व के समक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गुटनिरपेक्षता का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसे बाद में यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो, इंडोनेशिया के सुकर्णो और मिस्त्र के गमाल अब्दुल नासिर ने अंगीकार करते हुए गुटनिरपेक्ष आंदोलन को जन्म दिया।

१९६८ में टाटा कन्सल्टन्सी सर्विसिज़ की स्थापना से भारत सुचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नई ऊँचाई पर पहुँच गया ।

१९ जुलाई, १९६९ को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया, और लगभग ४०० रजवाड़ों को आजादी के समय से ही मिल रहे खैरात (प्रिवी पर्स) को बंद कर दिया।

१९७३ में उत्तराखंड राज्य के कुछ ग्राम वासियों ने वनों को काटने से बचाने के लिए एक अनोखे आंदोलन आरंभ किया, जिसमें वे पेड़ से चिपक जाते थे।

Monday, September 21, 2009

तक्षशिला ....


पकिस्तान के रावलपिंडी में तक्षशिला प्राचीनकाल में शिक्षा के प्रमुख केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध था । बौध साहित्य के अनुसार धनुर्विद्या और वैद्य शिक्षा के लिए विश्वविख्यात इसी केन्द्र से चंदगुप्त मौर्य ने सैन्य शिक्षा ग्रहण की थी । इस नगर को जैन धर्म का तीर्थ स्थल भी कहा गया है ।'' पुरातन प्रबंध संग्रह'' में यहाँ के १०५ जैन स्थलों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है । कौशल के राजा प्रसेनजित ,मगध का राजवैद जीवक ,प्रसिद्ध राजनितिज्ञ चाणक्य व बौध विद्वान् वसुबन्धु ने यहीं पर शिक्षा प्राप्त किया था । चीनी यात्री हुएनसांग के भारत आगमन के समय यह केन्द्र उजाड़ हो गया था । इसे विश्व का प्रथम विश्विद्यालय मन जाता है । तक्षशिला गंधार महाजनपद की राजधानी भी थी । इसे यूनेस्को ने विश्व विरासत की सूचि में भी शामिल किया है ।

कोणार्क का सूर्य मन्दिर



उडीसा में पुरी से ३३ किलोमीटर दूर समुद्र तट पर स्थित कोणार्क सूर्यमंदिर के लिए विख्यात है । इस मन्दिर का निर्माण अबुल फजल के अनुसार केशरी वंशी राजा ने नवीं शताब्दी में किया था । गंगवंशीय राजा नरसिंह देव प्रथम द्वारा तेरहवीं शताब्दी में इस मन्दिर को नविन रूप दिया गया । चतुर्भुजाकार परकोटे पर स्थित यह मन्दिर वास्तुकला की दृष्टि से श्रेष्ठ और अन्य मंदिरों से भिन्न है । मन्दिर के गर्भगृह में पशु पक्षियों ,किन्नरों ,गन्धर्वों ,देवी देवताओं तथा अप्सराओं की विभिन्न मूर्तियाँ आज भी विद्यमान है । मन्दिर की मूर्तियों में खजुराहो शैली की झलक दिखायी देती है ।

Friday, September 18, 2009

अपनों की खोज ..

अपना ब्लौग लाने की ज़रूरत क्या थी? इतनी मशहूर तो नहीं....सच मानिये..केवल अपने उन लिखने-लिखाने वाले साथियों की खोज के लिये जो पता नहीं कहां बिछड गये.... शायद कुछ मिल जायें इस ब्लौग के ज़रिये...
.......ये पंक्तियाँ है , वंदना अवस्थी जी के ब्लॉग ''अपनी बात'' की .....सच ! साथियों की खोज के लिए ही तो ब्लोगिंग शुरू हुई जो हिन्दी से नाता तोड़ कहीं गुम हो चुके है । हमें उन्हें न सिर्फ़ खोज लाना है बल्कि उन्हें उचित स्थान भी देना है ..और सुबह के भूले हुए को माफ़ भी कर देना है । बिछडे जब मिलते है तो गंगा बहती है ....और गंगा का बहना शुभ माना जाता है ।
अगर हम भी कहीं भटक जाय तो हमें अपने आप को भी खोज लाना है ....सच मानिये अपने आप को खोजना बहुत मुश्किल काम है, पर यह संभव है ..तो आइये मिलकर खोजना शुरू कर देते है ....अब देर करना ठीक नही....

Thursday, September 3, 2009

जीवन का अर्थ ......

धन ही सबकुछ नही ....जीवन में और भी बहुत कुछ है कमाने के लिए ....धन तो एक अदना सा हिस्सा है । धन कुछ हो सकता है ,पर सबकुछ तो कभी भी नही । केवल पैसा ही जीवन को खुशियों से नही भर सकता ..खुशियाँ कमाने के और भी बहुत सारे रास्ते है । धन आनंद का स्रोत नही ...अगर ऐसा होता तो हर धनवान के घर लक्ष्मी के साथ साथ सरस्वती भी निवास करती और उसके जीवन में कोई समस्या भी नही होती ।
इतिहास उनको याद करता है ,जो दूसरो के लिए कुछ करते हुए मर गए ....उन्ही की स्मृति दिमाग में कौतुहल पैदा करती है ,न की उनकी जिन्होंने अपना जीवन पैसे कमाने में और दूसरो को चूसने में लगा दिया । आज पैसे का बोलबाला है ..सही भी है , पर एक हद तक ....मूर्खों की तरह केवल पैसे लूटने के चक्कर में हम जीवन का मूल उद्देश्य भूल जाते है ....जीवन के अंत में कुछ हासिल नही कर पाते ।
कुछ लोग जन्म लेते है ..रूपया कमाते है और परलोक की यात्रा पर निकल जाते है ..ऐसे लोगों को इतिहास याद नही करता .....इतिहास ऐसे लोगों को याद करता है जिन्होंने इस जगत को कुछ दिया हो । हम उन महानुभावों को याद करते है ,जिन्होंने स्वार्थ की उपासना नही की .............. ।

Sunday, August 2, 2009

''एक बंगला बने न्यारा ......''

बाहर कोई संगीत बज रहा है , ऐसा लगा
गीत चल रहा था ...
''एक बंगला बने न्यारा ......''
के एल सहगल साहब की आवाज मेंरात के करीब ग्यारह बजेयह गीत मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर देता है
सारे जीवन का फल्स्फां इसी में दिखता है
मुझे शुरू से ही पुराने गानों की हवा नसीब हुई हैउन हवाओं में जो आनंद है ...वह नए गाने के झोकों में कहाँ
अतीत के भूले बिसरे गीत मुझे अपनी पुरानी तहजीब याद दिलाते हैसोचते सोचते आंखों में नमी छा जाती है

Monday, July 27, 2009

सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी हुई है ......

सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी हुई है ।

हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।


यह सही है की घुटनों तक कीचड़ सना है .... भ्रष्टाचार का बोलबाला है । पर किसी न किसी को तो कीचड़ साफ़ करना ही पड़ेगा और वह हम ही क्यों न हो ....

Wednesday, July 22, 2009

संगीत का एक अध्याय समाप्त हो गया ...सादगी और महानता का अध्यायकिराने घराने की महान शास्त्रीय गायिका गंगुबाई हंगल का निधन हो गया

Monday, July 13, 2009

जंगलों पर मानव का प्रकोप

हमारे देश में चिपको व अपिको आंदोलन जैसे वन बचाने के अनेक प्रेरणादायक उदाहरण हैं। गांववासियों के ये दो प्रयास ही लाखों वृक्षों को कटने से बचाने में सफल रहे। इन आंदोलनों के फलस्वरूप एक बड़े क्षेत्र में पहले वनों के व्यापारिक कटान पर रोक लगी व अनेक परियोजनाओं या निर्माणों के लिए जो वृक्ष कटान था, उसमें काफी कमी की गई।ऐसे आंदोलनों के बावजूद आज पेड़ों की कटाई अंधाधुंध जारी हैसरकारी प्रयास नाकाफी है
सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया है, जैसे हाल में अरावली क्षेत्र में हरियाली नष्ट करने वाले खनन पर रोक लगाई है । इस तरह के प्रयासों के बावजूद प्राकृतिक वनों की कटाई की अनुमति बहुत तेजी से दी जा रही है। यही स्थिति रही तो चार-पांच वर्षों में ही हमारे बचे-खुचे प्राकृतिक वनों की असहनीय क्षति हो जाएगी। सरकार का कहना है की बड़ी संख्या में पेड़ लगाए जा रहे है जबकि वास्तविकता इसके ठीक उलट हैकुल मिलाकर देखे तो पर्यावरण की असहनीय क्षति हो रही है और कृत्रिम रूप से लगाए गए वृक्ष कभी भी प्राकृतिक वनस्पति का स्थान नही ले सकतेग्लोबल वार्मिंग से निबटने के लिए सबसे आसान तरीका यही है की ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाये जाय
सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी को हमारी केन्द्र और राज्य सरकारें गंभीरता से नही ले रही है , यह एक चिंता का विषय हैइन्हे अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए नही तो सतत विकास की अवधारणा केवल एक अवधारणा ही बन कर रह जायेगी । बड़े शहरों में शिक्षा के माध्यम से पर्यावरण व पेड़ों की रक्षा की आवश्यकता के बारे में जानकारी तो बढ़ी है, पर इसके बावजूद दिल्ली हो या मुंबई या अपेक्षाकृत छोटे शहर, बड़ी संख्या में वृक्षों की कटाई के दर्दनाक समाचार मिलते ही रहते हैं।अतः पर्यावरण के प्रति जागरूकता का प्रसार करना सरकार की जिम्मेदारी बनती है
सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से पल्ला नही झाड़ सकती
नगरों में आर्थिक दबाव के कारण भी वृक्षों की बड़ी संख्या में कटाई हो रही हैलोग पार्क की बजाय गाड़ी की पार्किंग में ज्यादा रूचि लेते हैअब समय की मांग है की लोगो में जनजागरण का अभियान चलाया जाय और पेड़ों की कटाई पर तुंरत रोक लगा दी जाय

Saturday, July 4, 2009

संजीवनी

आज लोगो की संवेदना आत्म केंद्रित हो गई है । यह नगरीकरण और उदारीकरण का ही प्रभाव है। एक मिनट भी शुकून से बात नही कर सकते । केवल शब्दों की पच्चीकारी ही करते है । बनावटी भाषा का प्रयोग और दिखावटी मुस्कराहट ने तो लोगो की आत्मा को ही खंगाल दिया है । आप ही बताओ... इस संवेदना विहीन समाज में कैसे रहने का मन करेगा ?
ऐसा प्रतीत होता है ....हमारा समाज अब आखिरी साँसे ले रहा है । कुछ ही दिनों में उसकी मौत होने वाली है ...और उसके बाद हम जानवरों की तरह रहेगे । सामजिक समरसता ख़त्म होने के कगार पर है ..एक दुसरे को पीछे छोड़ना ही सभ्यता का प्रतिक हो गया है । मुझे अभी भी उम्मीद है की अन्तिम साँसे ले रहा समाज को कोई संजीवनी मिल जायेगी ।ऐसा भी हो सकता है ...मै ज्यादा आशावादी हो गया हूँ । कुछ भी हो उम्मीद का दामन तो छोड़ा नही जा सकता ...यह हमारी भी जिम्मेदारी है । संजीवनी हम भी ढूंढ़ सकते है ।

Wednesday, July 1, 2009

.ऐ मेरे लड्डू! सुनो .....

लड्डू ......! भारत की काफी फेमस मिठाई ...लड्डू देखते ही लोगो के मुंह में पानी जाता हैमंगल वार को तो इसकी कीमत वैसे ही बढ़ जाती है क्योंकि इस दिन हनुमान जी को लड्डू का भोग लगाया जाता है ....लड्डू तो गणेश जी को भी बहुत पसंद है तभी तो उनके आगे लड्डू से भरी थाल ही रखी रहती हैकुल मिलाकर इसे नेशनल मिठाई कहने में कोई बुराई नही है
मैंने कई बच्चों के नाम भी इसी मिठाई पर रखे हुए देखे हैवैसे तो मुझे लड्डू खाना अच्छा लगता है ...पर इतना नहीं की इसमे डूबा ही रहूँइतना जरुर है की खा लेता हूँ ....पर कुछ दिनों से लड्डू शब्द मुझे बहुत अच्छा लगने लगा है .....लगता है ...इससे ज्यादा मिठास तो दुनिया के दुसरे किसी शब्द में नही हो सकतापहले तो कभी ऐसा नही हुआ ....आजकल इसमे इतनी मिठास कहाँ से गई ?.....या लड्डू के प्रति मेरा नजरिया बदल गया ....कहीं कुछ हुआ तो नहीं .....कोई घटना तो नहीं घटी ...जिसकी वजह से लड्डू इतना प्यारा हो गया ....पता नहीं मुझे तो ऐसा कुछ याद नहीं है .....
पहले सोचता था कैसा नाम है ....लड्डू !ऐसा लगता था जैसे किसी बुद्धू आदमी की प्रतिमा लड्डू शब्द में छिपी हुई है ....साफ़ शब्दों में कहें तो लड्डू शब्द अनाड़ी का पर्याय लगता था । ....तो आज क्या हुआ ?...मेरे जिंदगी का सबसे कीमती पल ....और लड्डू की मिठास ने मुझे शायद बहुत ही कूल कर दियालड्डू का ही प्रताप है ...अब गुस्सा नही आता ....मुस्कराहट बढ़ गई है .....हर जगह मिठास ही दिख रही है ....क्या कहूँ? लड्डू ने तो मुझे बिल्कुल बदल दिया हैअब तो सपनो में भी ......
जब लड्डू शब्द सुनता हूँ तो ...सारे शरीर में सिहरन पैदा होती है ....एनर्जी दुगुनी हो जाती है
मन ही मन कहता हूँ .... मेरे लड्डू तू तो बदल गया रे .....लड्डू शब्द सुनने के लिए बेचैन रहता हूँ ....कास !मेरा नाम लड्डू ही होताऐसा लगता है ...मेरा मन लड्डू से ही जुड़ गया है ...इसकी मिठास हर जगह फैली हुई है ....अब यह मेरे लिए जिंदगी का मकसद बन गया है .... खाने वाला लड्डू तो सिर्फ़ प्रतीकात्मक है .....मेरा लड्डू तो मन की गहराइयों से निकला है ....उसे केवल महशुश ही किया जा सकता है
मेरे साथ कुछ अजीब हो रहा है ....लड्डू शब्द सुनना ही पहली प्राथमिकता बन गई है ......लड्डू को सुनते ही सारी बेचैनी ख़त्म हो जाती है ...मन को बहुत ही शुकून मिलता है ...... मेरे लड्डू! सुनो ! जिंदगी में ऐसे ही मिठास भरते रहना ....

Saturday, June 27, 2009

आज के कुत्तें ......

आज, जब मै अपने रूम से निकला तो देखा की एक कुत्ता एक कूड़ा उठाने वाले पर जोर जोर से भौंक रहा है । वह बहुत जोर से भौक रहा था .....ऐसा लगा उसने अपनी पुरी शक्ति लगा दी हो । बेचारा कूडे वाला उसकी तो जान ही अटक गई थी । दो तिन और कुत्तें वही बैठे हुए थे । वे सब ऊँघ रहे थे । उनको कोई फर्क नही पड़ा की उनका एक साथी कुछ कर रहा है । मुझे यह देख घोर आर्श्चय हुआ । गाँव याद आ गया । गाँव में अगर किसी एक मुद्दें को लेकर कोई कुत्ता भौकना शुरू करता था तो मजाल है की उसके आस पास के कुत्तें चुप रहे । वे तुंरत यूनिटी दिखाते हुए साथ देने लगते ।
आज सोचता हूँ की इंसान शहरी होकर एक दुसरे के साथ मिलना जुलना ,दुःख दर्द में शरीक होना तो छोड़ ही चुका है .....इसका असर शहरी कुत्तों पर भी पड़ा है ,तभी तो वे उस यूनिटी को भूल चुके है जो कभी उनकी विरासत रह चुकी है । मै इसे सोचते सोचते आगे बढ़ गया ..... लड्डू चलो चुपचाप...... आगे अभी बहुत से बदलाव देखने है । एक दिन तो इंसानियत को भी ख़त्म होते देखना है .....तब मुझे लगा की ये तो एक छोटी सी बात है और मेरे कदम आगे बढ़ गए ।

Saturday, June 20, 2009

आने वाली जेनेरेशन के लिए भी कुछ बचा कर रखो ....

एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्ष 2050 तक ग्लेशियरों के पिघलने से भारत, चीन, पाकिस्तान और अन्य एशियाई देशों में आबादी का वह निर्धन तबका प्रभावित होगा जो प्रमुख एवं सहायक नदियों पर निर्भर है।ग्लोबल वार्मिंग आज पुरे विश्व की प्रमुख समस्या बन चुकी हैयह किसी एक देश से सम्बंधित होकर वैश्विक समस्या है ,जिसकी चपेट में लगभग सारे देश आने वाले है
भारतीयों के लिए गंगा एक पवित्र नदी है और उसे लोग जीवनदायिनी मानते हैं। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि नदियों में परिवर्तन और उन पर आजीविका के लिए निर्भरता का असर अर्थव्यवस्था, संस्कृति और भौगोलिक प्रभाव पर पड़ सकता है। गंगा तब जीवनदायिनी नही रह पायेगीबाढ़ और सूखे का प्रकोप बढ़ जाएगा
जर्मनी के बॉन में जारी रिपोर्ट Searh of Shelter : Mapping the Effects of Climate Change on Human Mitigation and Displacement में कहा गया है कि ग्लेशियरों का पिघलना जारी है और इसके कारण पहले बाढ़ आएगी और फिर लंबे समय तक पानी की आपूर्ति घट जाएगी। निश्चित रूप से इससे एशिया में सिंचित कृषि भूमि का बड़ा हिस्सा तबाह हो जाएगा। यह रिपोर्ट एक भयावह स्थिति को प्रर्दशित करता हैसमय रहते ही चेत जाने में भलाई है , नही तो हम आने वाली भावी पीढियों के लिए कुछ भी छोड़ कर नही जायेंगे और यह उनके साथ बहुत बड़ा धोखा होगा

Thursday, June 18, 2009

एक स्वप्न जो टूट गया.....

दिल बैठ गया ....दिल की बातें अन्दर ही रह गई
इतना तो पता चल ही गया ....सपना देख रहा था ...जिसे एक दिन टूटना ही था
अपमानित भी हुआ ....शायद जिंदगी में पहली बार ....!
उसने मेरे वजूद को हिला कर रख दियाअन्दर तक हिल गयादुबारा हिम्मत ही नही बची ....
इतना आकर्षण कभी नसीब नही हुआ था ....पर टुटा तो सीधे फर्श पर गिरा
एक सपना .....भूल जाना ही बेहतर हैयही प्रायश्चित है

Friday, June 5, 2009

..हाय रे मेमोरी !

जब स्कूल में था, तो ये दुनिया बड़ी अजीब लगती थी . सबकुछ बड़ा ही अजीब लगता था . बाल मन में कई अजीब सवाल उठते थे ....उन सवालों के जबाब कोई देने वाला नही था । आज जब कई लोग उनका जबाब दे सकते है तो सवाल ही नही उठते । वो बचपन कहाँ गया ....वो इक्षाशक्ति और जानने की लालशा कहाँ गई ....भाई मै तो बड़ा ही परेशान हूँ । कहतें है अतीत को याद नही करना चाहिए लेकिन मै अपनी बचपन की यादों को कैसे छोड़ दूँ ? वो मस्त जीवन , वो मीठी यादें .....नही भूल सकता । गाँव की गलियों में घूमना । कोई चिंता फिकर नही .... डांट खाना और फ़िर वही करना ,आगा पीछे सोचने की कोई कोशिश नही । घर से ज्यादा दोस्तों की चिंता ....कौन क्या कर रहा है .....इसकी ख़बर रखना । आज कई यादें धुंधली हो गई है ....कुछ तो लुप्त हो गई है ....हाय रे मेमोरी । याद करने की कोशिश बेकार हो जाती । वो बचपन छोटा सफर था लेकिन अकेला सफर तो कतई नही था । आज तो मन भीड़ में भी अकेला लगता है .... ये दर्द बयां नही कर सकता । केवल महशुश कर सकता हूँ ।

Tuesday, June 2, 2009

ख़्वाबों में ही तुझे तराशा है .....

मेरा हर ख्वाब तुमसे हैख़्वाबों में तुझे ही हर रोज पाता हूँ
.....और तुम गुमसुम बैठी होये ठीक नही है ....अब मुस्कुरा भी दो
मुझे अच्छा लगेगा
तुझे देख कर ही तो ख्वाब बुनता हूँकैसे तोड़ दूँ ?
ख़्वाबों में ही तुझे तराशा हैकड़ी मेहनत से एक मूरत बनी है
कैसे छोड़ दूँ ?
तेरी चमकीली आँखें ...मेरे सपनों की बुनियाद है
अब जाओ ...देर करोये ठीक नही है

Monday, May 11, 2009

लेखन का आनंद

लेखन का आनंद ही अलग है । यहाँ दूसरों पर बहुत कम निर्भरता है । यहाँ बाजार कम, रचनाकार ज्यादा तय करता है । बाजार और लेखन में कोई सामंजस्य नही हो सकता ....अगर बिठाने की कोशिश की गई तो लेखन का विकृत रूप देखने को मिलेगा ।
लेखन तो प्रकृति के काफी निकट है । बाजार में नही मिल सकता । यह तो प्रकृति के गोद में ही मिलेगा ।
लेखन में आजादी है ...सोचने की , कुछ अलग करने की और कुछ नया लिखने की । निश्चित रूप से अपने आप को पहचानने की संभावना भी यही छुपी हुई है ।
मन में आता है किसी पर्वत की चोटी पर बैठ कर दुनिया भर के अनोखे लोगों के लिए कुछ लिखूं । आजादी और रचनात्मकता को गले लगाऊं । बर्फ , झरने और नदियों को ई मेल कर नेचर के निकट जाऊं ।
अभी तो बहुत अनुभव लेने है । लेखन का दशमलव भी नही जानता । पर्वत की चोटी पर जाना तो दूर की बात है । भरोशा है ...चोटी पर न सही कुछ आगे तो जरुर जाऊँगा ।

Wednesday, May 6, 2009

मत्स्य पुराण में लिंग पूजा का उल्लेख मिलता है ......

अरबों ने अंक पद्धति भार्वासियों से सिखा ।
मत्स्य पुराण में लिंग पूजा का उल्लेख मिलता है ।
कालिदास शिवोपासक थे ।
भारवि ने अपने महाकाव्य किरातार्जुनीय में अर्जुन और शिव के बिच युद्ध का वर्णन किया है ।
वाकातक शासक प्रवार्शें द्वितीय को सेतुबंध नामक कृति का रचयिता माना जाता है ।
कनिष्क के दरबार में पार्श्व ,वसुमित्र और अश्वघोष जैसे विद्वान् थे ।
मेगास्थनीज के अनुसार मौर्य काल में बिक्री कर नही देने वाले को मृत्यु दंड मिलता था ।
बौध धर्म के अनुसार महापरिनिर्वान मृत्यु के बाद ही संभव है ।

Friday, May 1, 2009

विटामिन सी और विटामिन डी

स्कर्वी रोग विटामिन-c की हीनता से होता है ।
इस विटामिन को एस्कोर्बिक अम्ल कहते है ।
मसूडों में खून आना , पेशियों तथा जोडो में दर्द के साथ दुर्बलता इसके प्रमुख लक्षण है ।
शारीरिक भार में कमी हो जाती है और घाव भी जल्द नही भरता है ।
निम्बू , संतरा ,अनन्नास , अंगूर ,पालक हरी मिर्च में विटामिन-c के प्रमुख स्रोत है ।
विटामिन-c की गोली के सेवन से भी स्कर्वी पर काबू पाया जा सकता है


विटामिन डी की कमी से रिकेट्स नामक रोग होता है ।
हमारी त्वचा में विटामिन डी का संश्लेषण सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में होता है ।
विटामिन डी के अभाव में कैल्सियम आयन की मूत्र के साथ अत्यधिक हानि होती है ।
विटामिन डी की कमी से बच्चों में रिकेट्स तथा बड़ों में ओस्तियोमालेसिया नामक बिमारी होती है ।
रिकेट्स को सुखा रोग भी कहते है ।
बच्चों की टाँगे धनुष के आकार की हो जाती है । पसलियों के आकार में परिवर्तन के कारण बच्चों का वक्ष कबुतर्नुमा हो जाता है ।
काड लीवर तेल , मछली , दूध , अंडे की जर्दी प्रमुख स्रोत है ।

Wednesday, April 29, 2009

एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती......

जीवन एक संगिनी की तरह हैहमेशा आपके साथराह में हर मोड़ पर कदम मिलाते हुए
कुछ ख़त्म हो गया तो क्या हुआबहुत कुछ अभी बाकी है , मेरे दोस्त .....कहाँ खो गए
दोस्त ! एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जातीबहुत से सपने अभी भी बुने
जा सकते हैटूटने दो यार एक सपने को ..वह टूटने के लिए ही था
हर शाम के बाद सुबह , हर सुबह के बाद शामयह तो प्रकृति का नियम हैअभी शाम है ...
मेरे दोस्तसुबह का इन्तजार करोआनेवाला ही हैफ़िर डर कैसा ? जम कर करो ,इन्तजार
क्या कहू दोस्त ....जीवन में अँधेरा भी तो जरुरी हैतभी तो उजाले का प्रश्फुटन होगा
अंधेरे के बाद का उजाला ज्यादा मीठा होता हैचख कर तो देखो

Wednesday, April 22, 2009

पृथ्वी दिवस का मजाक ....

२२ अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया गया हर साल इसी दिन को मनाया जाता है पृथ्वी को बचाने की तरकीब बनाई जाती है लोगो में जागरूकता फैलाई जाती है कई कार्यक्रम होते है बंद कमरों में पृथ्वी की स्थिति पर चर्चा होती है सेमिनारों में जानकार लोग जीवन को बचाने सम्बंधित बड़ी बड़ी बातें करते है ये बातें २३ अप्रैल को भुला दी जाती है और फ़िर अगले २२ अप्रैल का इन्तजार शुरू हो जाता है
पृथ्वी दिवस भी होली , दिवाली ,दशहरा जैसे त्योहारों की तरह खुशी का दिन और खाने पिने का दिन मान कर मनाया जाने लगा है इसके उद्देश्य को लोग केवल उसी दिन याद रखते है बल्कि मै तो कहुगा की घडियाली आंसू बहाते है हमें इस बात का अंदाजा नही है की कितना बड़ा संकट आने वाला है और जब पानी सर से ऊपर चला जायेगा तो चाहकर भी कुछ नही कर सकते , अतः बुद्धिमानी इसी में है की अभी चेत जाए
वैश्विक अतर पर पर्यावरण को बचाने की मुहीम १९७२ के स्टाकहोम सम्मलेन से होती है इसी सम्मलेन में पृथ्वी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई और हरेक साल जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने पर सहमती व्यक्त की गई १९८६ के मोंट्रियल सम्मलेन में ग्रीन हाउस गैसों पर चर्चा की गई १९९२ में ब्राजील के रियो दे जेनेरियो में पहला पृथ्वी सम्मलेन हुआ जिसमे एजेंडा २१ द्वारा कुछ प्रयास किए गए इसी सम्मलेन के प्रयास से १९९७ में क्योटो प्रोटोकाल को लागू करने की बात कही गई इसमे कहा गया की २०१२ तक १९९० में ग्रीन हाउस गैसों का जो स्तर था , उस स्तर पर लाया जायेगा अमेरिका की बेरुखी के कारण यह प्रोटोकाल कभी सफल नही हो पाया रूस के हस्ताक्षर के बाद २००५ में जाकर लागू हुआ है अमेरिका अभी भी इसपर हस्ताक्षर नही किया है यह रवैया विश्व के सबसे बड़े देश का है , जो अपने आपको सबसे जिम्मेदार और लोकतांत्रिक देश बतलाता है वह कुल ग्रीन हाउस गैस का २५%अकेले उत्पन्न करता है
अगर ऐसा ही रवैया बड़े देशो का रहा तो पृथ्वी को कोई नही बचा सकता जिस औद्योगिक विकास के नाम पर पृथ्वी को लगातार लुटा जा रहा है , वे सब उस दिन बेकार हो जायेगे जब प्रकृति बदला लेना आरम्भ करेगी

Tuesday, April 21, 2009

हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???

आकाश को देख रहा हूँ । कोई छोर नही दीखता । इतना फैला हुआ है ...... डर लग लगता है ।
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा ।
फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है ।


सुना है पृथ्वी गोल है । हो सकता है , ब्रह्माण्ड भी गोल हो । किसे पता ?? भाई हमारी भी तो एक सीमा है । सबकुछ नही जान सकते । कुछ दुरी तक ही भाग दौड़ कर सकते है । भाग दौड़ करते रहे । इसी का नाम तो जीवन है । इतना सलाह जरुर देना चाहुगा की सबकुछ जानने के चक्कर में न पड़े । यह एक बेकार की कवायद है । इस राह पर चल मंजिल को पाना तो दूर की बात है , खो जरुर देगे ।
इधर ये भी सुनने में आया है की एक क्षुद्र ग्रह पृथ्वी से टकराने वाला है ...शायद २०२८ में !
यह सनसनी है या हकीकत नही पता ।
अगर सनसनी है ...तो है ..पर वास्तव में ऐसा है तो परीक्षा की घड़ी आ गई है ...
इस खबर को सुनकर सुमेकर लेवी वाली घटना याद आती है , जब मै बच्चा था । सुमेकर बृहस्पति से जा टकराया था । यह घटना १९९४ की है । उस समय ऐसी ख़बर सुन डर गया था ।
देखते है ...२०२८ में क्या होता है .......

Monday, April 20, 2009

पालिश किया हुआ चावल और मक्का न खाएं .....

बेरी बेरी रोग विटामिन B1 की कमी से होता है ।
इस विटामिन को एन्तिन्युरेतिक फैक्टर भी कहते है ।
बेरी -बेरी का रोग उन क्षेत्रों में अधिक होता है जहाँ पर पालिश किया हुआ चावल खाया जाता है ।
दालें , हरी पत्तीदार सब्जियां ,मुगफली आदि इसके प्रमुख स्रोत है ।
यकृत ,वृक्क ,दूध तथा अंडे की जर्दी में यह विटामिन पाया जाता है ।
चोकरयुक्त आटे की रोटी और दलिया इसके सर्वोत्तम स्रोत है ।


पेलाग्रा नामक रोग विटामिन B7 की कमी से होता है ।
इस विटामिन को नाइसिन या निकोटिनिक अम्ल कहते है ।
पेलाग्रा सामान्यतः उन क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है जहाँ मक्का प्रमुख आहार है ।
मक्का शरीर में नाइसिन के अवशोषण में बाधक है , जिसके कारण यह रोग होता है ।
पेलाग्रा के प्रमुख लक्षण है - त्वचा में जलन ,छाजन ,स्मृति विकार , अतिसार आदि ।
इस रोग को 4D सिंड्रोम भी कहते है ।
मटर , अन्न की भूसी ,सेम ,हरी पत्तेदार सब्जियाँ , कॉफी , यकृत , मछली ,दूध आदि विटामिन B7 के प्रमुख स्रोत है ।

Thursday, April 16, 2009

सम्राट अशोक ...

अशोक ने अपने राज्याभिषेक के नवें वर्ष में कलिंग पर विजय प्राप्त की ।
उसने खस , नेपाल को जीता तथा तक्षशिला के विद्रोह को शांत किया ।
बिन्दुसार की मृत्यु के बाद वह मौर्य वंश का राजा हुआ ।
कलिंग को जितने के बाद तोशली को कलिंग की राजधानी बनायी गई ।
कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने धम्म विजय की निति को अपनाया ।
यह उसका पहला और आखिरी युद्ध था ।
उतर पश्चिम में शाह्बाज्गाधि और मानसेरा में अशोक के शिलालेख पाये गए है ।
काबुल के लम्गान में भी अशोक के लेख अरामाइक लिपि में मिलते है ।
उतर पश्चिम में अशोक के साम्राज्य की सीमा हिन्दुकुश थी ।
काल्शी , रुमिन्देई और निगाली सागर अभिलेखों से पता चलता है की देहरादून और नेपाल की तराई के क्षेत्र अशोक के राज्य में थे ।

Saturday, April 11, 2009

विष्णु प्रभाकर हमेशा याद आते रहेगे ...

आज विष्णु प्रभाकर हमारे बीच से चले गए लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा लोगों के साथ रहेंगी। प्रभाकर को पद्मभूषण दिया गया था, लेकिन देर से दिए जाने के कारण अपने आत्म सम्मान पर चोट मानते हुए लेने से इनकार कर दिया था । उन्होंने अपने स्वाभिमान से कभी भी समझौता नही किया । उनका साहित्य पुरस्कारों से नही बल्कि पाठको के स्नेह से प्रसिद्ध हुआ ।
उनका जन्म 20 जुलाई 1912 को उत्तरप्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर गांव में हुआ था। छोटी उम्र में ही वह पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से हिसार चले गए थे। प्रभाकर पर महात्मा गांधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी को अंग्रेजों के ख़िलाफ़ हथियार के रूप में प्रयोग किया।

१९३१ में हिन्दी मिलाप में उनकी पहली कहानी छपी और इसी से उनका साहित्य जगत में आगाज हुआ । आजादी के बाद उन्हें दिल्ली आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक बनाया गया। शरतचंद की जीवनी परआधारित आवारा मसीहा उनकी प्रसिद्ध रचना है । उनको साहित्य सेवा के लिए पद्म भूषण, अर्द्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी सम्मान और मूर्तिदेवी सम्मान सहित देश विदेश के कई पुरस्कारों से नवाजा गया।

Friday, April 10, 2009

सादगी ....

सादगी केवल एक शब्द ही नही , जीवन दर्शन हैसच्चाई का दूसरा नामसुन्दरता का प्रतिक
इस जमाने में भी कभी कभी दिख जाती हैपर गुमशुम ही रहती है
क्या करे ? मजाक नही बनना चाहती
सभी की जिंदगी में बुरा समय आता हैआशा रखो ... अंततः जीत सच्चाई की ही होगीदेर भले हो जाय

Wednesday, April 8, 2009

सच कहूँ ... घोर कलयुग आ गया है

वो गंगाअब नही दिखतीजिसकी आवाज में मधुरता थीचेहरा देखने के लिए आईने की जरुरत नही थीजो हमारी प्यास भी बुझाती थीआज गंदे नाले में बदल गईउसका कोई दोष नहीवो तो अपने हालत पर रो रही हैउस दिन को याद कर रही है, जब भगीरथ ने धरती पर अवतरित कियायाचना कर रही है ...अब भी छोड़ दोउसकी आवाज सुनने वाला कोई नहीसच कहूँ ... घोर कलयुग गया है

Tuesday, April 7, 2009

खुशी .....

कुछ नया करो , जिसमे खुशी मिले । काम बहुत छोटा ही क्यों न हो । इश्वर है न , वह निर्णय लेगा । तो फ़िर लोगो की बातों पर क्यों जाते हो ?वो तुम्हे खुशी नही दे सकते ।

Sunday, April 5, 2009

लज्जा और हया

लज्जा और हया शब्द तो म्यूजियम में रखने योग्य हो गए है । लोगो को दिखाया जायेगा ... ये कभी भारत के अनमोल धरोहर होते थे । लोग विश्वास नही करेगे और बहस शुरू हो जायेगी ।

Tuesday, March 31, 2009

स्वदेशी बलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम

* उडीसा के बालासोर से स्वदेशी बलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम का किया गया तीसरा कामयाब टेस्ट एक उपलब्धि है।भारत जिस तरह चारो ओर से दुश्मनों से घिरा हुआ है , ऐसे माहौल में इसकी शख्त जरुरत है ।
*रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन पिछले कई सालों से ऐसी इंटरसेप्टर मिसाइल बनाने में लगा हुआ है और यह उपलब्धि आस जगाती है ।
*अभी हमारे पास लगभग तिन हजार किमी मार करने वाली मिसाइलें है ,जो नाकाफी है । हमारे वैज्ञानिक पाँच से दस हजार किमी तक मार करने वाली आई सी बी एम् मिसाइल बनाने में लगे हुए है ।
*यह डिफेन्स सिस्टम पांच से दस हजार किलोमीटर की मारक क्षमता वाली अंतरमहाद्वीपीय मिसाइलों को टार्गेट तक पहुचने से पहले ही नष्ट कर देगी ।
*इस सिस्टम में इस्राइली ग्रीन पाइन रेडार्स का इस्तेमाल हुआ है, उनमें भी कई सुधार भारतीय वैज्ञानिकों ने किए हैं जो हमारी जरुरत के अनुकूल है ।
* यह मिसाइल डिफेंस सिस्टम वक्त की जरूरत है। हम हरगिज नहीं चाहेंगे कि कभी इस सिस्टम को आजमाने की नौबत इस इलाके में आए, पर इस संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि भविष्य में यदि युद्ध हुए तो वे मिसाइलों से लड़े जा सकते हैं।उस स्थिति में यह हमारी मदद करेगा ।
*पड़ोसी चीन भी मिसाइल डिफेंस कार्यक्रम में लगा है। हमारे देश में बलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) अभी प्रारंभिक दौर में है और इसे एक भरोसेमंद डिफेंस सिस्टम में तब्दील होने में कुछ साल और लग सकते हैं।
*

Monday, March 30, 2009

मेहदी हसन की हालत ....

आज मेहदी हसन की याद आ रही है .... सोच रहा हूँ ,ऐसे फनकार बिरले पैदा होते है.....अपने इलाज के लिए भी उन्हें पैसे पैसे के लिए तरसना पड़ रहा है , यह देख नई पीढी क्यों गजल गायन या शास्त्रीय संगीत में रूचि दिखायेगी . फिर पत्ता बूटा बूटा जैसी गजलों को अपनी आवाज़ के जादू से यादगार बनाने वाले 82 साल के हसन गरीबी से इस कदर जूझ रहे हैं कि उनके इलाज के लिए भी पूरा बंदोबस्त नहीं हो पा रहा है।दुनिया भर के उनके प्रशंषकों को इलाज के लिए पैसे जुटा कर भेजने चाहिए । पाकिस्तानी या भारतीय सरकार को भी मदद करनी चाहिए ।
वह फेफड़ों के संक्रमण के कारण पिछले डेढ़ महीने से कराची के आगा खान यूनिवर्सिटी अस्पताल में भर्ती हैं। राजस्थान के लूना में जन्मे हसन नौ बरस पहले पैरलाइसिस के चलते मौसिकी से दूर हो चुके है । अन्तिम समय में यह दिन भी देखना पड़ रहा है । क्यों किसी फनकार के पास इतना भी पैसा नही होता जिससे वह अपना जीवन सुखमय बिता सके ।

Wednesday, March 25, 2009

रूस के साथ ऊर्जा समझौता ..

रूस परमाणु ऊर्जा आयोग के साथ हुए 70 करोड़ अमेरिकी डालर के सौदे के तहत जल्द ही भारत को परमाणु ईधन की आपूर्ति शुरू करेगा।परमाणु ऊर्जा आयोग और परमाणु आपूर्ति करने वाली दुनिया की अग्रणी कंपनियों में एक रूस की टीवीईल कार्पोरेशन के बीच इसी साल फ़रवरी में एक दीर्घगामी समझौता हुआ था।
रूस कुडानकुलम में 2000 मेगावाट क्षमता वाले दो डब्ल्यूईआर-1000 संयत्रों का निर्माण कर रहा है। इनके चालू होने पर भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पन्न कराने की क्षमता में काफी वृद्धि होगी ।रूस के राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव की पहली भारत यात्रा के दौरान पिछले साल दिसंबर 2008 में एक समझौते पर दस्तखत हुए थे जिसके तहत वह चार और संयत्र भारत में स्थापित कराने में सहयोग करेगा ।

ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए प्रयास ...

तीसरी दुनिया के देशों के नेतृत्व करते हुए भारत ने जलवायु परिवर्तन पर निष्पक्ष और बराबरी आधारित बहुपक्षीय ढांचे की मांग की है जो विश्व के देशों को कार्बन मुक्त अर्थव्यवस्था की तरफ जल्द बढ़ने में मददगार होगा।

वाशिंगटन के प्रतिष्ठित 'थिंक टैंक' कारनेगी एंडाउमेंट फार इंटरनेशनल रिलेशंस की बैठक को संबोधित करते हुए जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री के विशेष दूत श्याम सरन ने कहा कि भारत चाहेगा कि इस सिलसिले में अमेरिका नेतृत्व संभाले।

सरन ने कहा की हमें बहुपक्षीय ढांचा बनाने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है जो निष्पक्ष और बराबरी आधारित हो तथा हमें कार्बन मुक्त अर्थव्यवस्था से यथाशीघ्र बदलाव में मदद करे। उन्होंने कहा कि भारत उम्मीद करता है कि कोपनहेगन में 15वीं सीओपी में निष्पक्ष और बराबरी आधारित तथा महत्वाकांक्षी नतीजा निकलेगा जो यूएनएफसीसीसी और बाली कार्ययोजना के नतीजे पर आधारित होगा। उन्होंने कहा कि भारत इस उद्देश्य के लिए अमेरिका के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है। इससे ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ वैश्विक माहौल बनेगा ।

उन्होंने कांग्रेस सदस्य एड मर्की से मुलाकात की, जो उर्जा स्वावलंबन और ग्लोबल वार्मिंग पर चयन समिति के प्रमुख हैं। उल्लेखनीय है कि मर्की असैनिक परमाणु समझौते के प्रबल विरोधी रहे हैं जो दोनों देशों के बीच पिछले साल हुआ।भारत सभी को समझाने की कोशिश करेगा की यह नाभिकीय समझौता न तो किसी के खिलाफ है और न ही इससे उसके पर्यावरण कार्यक्रम पर असर पड़ेगा । इसके उलट तापीय ऊर्जा पर निर्भरता कम होने से गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश लगाया जा सकेगा ।

Saturday, March 21, 2009

है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है .....

है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है ..... यह कथन मुझे रात में याद आ रहा था । रात में बिजली चली गई थी , कुछ पढ़ने का मन भी कर रहा था पर आलस की वजह से बाहर जाकर मोमबती लाने में कतरा रहा था । तभी दिमाग में यह बिचार आया और भाग कर मोमबती लेने चला गया । बिजली काफी देर तक नही आई .... इसी बिच मैंने कुछ पढ़ लिया ।

यह एक छोटी सी घटना है । पर इसका अर्थ काफी बड़ा है । जीवन में कई ऐसे मौके आते है जब हम अँधेरी रात का बहाना बना काम को छोड़ देते है । माना की समाज के सामने चुनौतिया ज्यादा है और समाधान कम । तो क्या हुआ ? यह कोई नई बात तो है नही .... हमेशा से ऐसा ही होता रहा है । आम आदमी की चिंता करने वाले काफी कम लोग है । गरीबों के आंसू पोछने वाले ज्यादातर नकली है ... तो क्या हुआ , आपको कौन मना कर रहा है की आप असली हमदर्द न बने । मै समझता हूँ की यह ख़ुद को धोखा देने वाली बात हुई । एक चिंगारी तो जलाई ही जा सकती है .... इसके लिए किसी का मुंह देखने की जरुरत नही है । परिस्थितिओं का रोना रो रो कर तो हम बरबाद हो चुके है । अब और नही ..... यह शब्द दिल से जुबान पर आना ही चाहिए ।

सोचता हूँ , अँधेरी रात का बहाना हम अपनी कमियों को छिपाने के लिए बनाते है .... औरो का तो नही पता पर मै इस काम में माहिर हूँ । ये बड़ी शर्म की बात है .... जीवन को अर्थहीन बनाने में इसका बड़ा योगदान रहा है । पर अब एक मकसद मिल गया है ..... दीपक तो जलाना ही पड़ेगा ।

इस सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी है

हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है .......

यह सही है की घुटनों तक कीचड़ सना है .... भ्रष्टाचार का बोलबाला है । पर किसी न किसी को तो कीचड़ साफ़ करना ही पड़ेगा और वह हम ही क्यों न हो .... किसी ने रोका तो नही है न ....

Wednesday, March 18, 2009

कागज की आजादी मिलती , दो दो आने में ....

कागज की आजादी मिलती , ले लो दो दो आने में ....... नागार्जुन
मुझे इस कथन पर ज्यादा आश्चर्य नही होता , जब मै आज के हालात को देखता हूँ । आज ज्यादातर लोग आजादी का मतलब समझते ही नही और कुछ लोग समझकर भी समझना नही चाहते । नई पीढी जो अपने आप को मॉडर्न कहती है , उसका तो बहुत बुरा हाल है । जब कालेज के अधिकाँश छात्र ये नही जानते की देश गणतंत्र कब हुआ तो वे आजादी के मतलब को क्या समझेगे ? उनकी जिंदगी कालेज कैम्पस तक सिमट गई है .... देश -दुनिया में क्या हो रहा है ?उससे कोई सरोकार नही । यह देख लगता है की एक दिन दो दो आने वाली बात भी सच हो जायेगी ।

हम आजाद हुए थे आधी रात को और सबेरा अभी तक नही हुआ ...

हम आजाद हुए थे आधी रात को और सबेरा अभी तक नही हुआ ...... सोचिए किसका दोष है ? हमारा , जी एकदम सही कहा ..... दूसरों पर जिम्मेदारी डालना हमारी नियति बन गई है । माना की सबसे बड़ी जिम्मेदारी हमारी सरकार की और हमारे नेताओं की बनती है , लेकिन वो पैदा कहाँ से होते है .... हमें सब पता होता है ....पर हम समझना नही चाहते .... कोई बात नही , मत समझिये ..... आगे सबेरा होगा भी नही ।

Monday, March 16, 2009

गांधीवाद ...

शैल घोष ने गाँधी के ऊपर ''कोलोनियल मोर्देनाइजेसन एंड गाँधी '' नामक एक किताब लिखा है इसमे उन्होंने लिखा है कि गांधी की विचारधारा भारतीय राष्ट्रीयता को समझने के लिए एक प्रस्थान बिंदु है। गांधी के परिदृश्य में आने के बाद ही भारतीय राष्ट्रीयता आंदोलन में वे लोग भी शामिल हुए जो पहले समाज में हाशिए पर थे। इससे भारतीय राष्ट्रवाद का दायरा विस्तृत हुआ। इस राष्ट्रवाद की जड़ें पश्चिम में नहीं थीं, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि इसमें उपनिवेशवाद की कोई भूमिका नहीं थी।गांधी को उभारने में उपनिवेशवाद का अपना अलग रोल रहा था । आधुनिकता के कोई एक मायने नहीं हैं और समय बदलने के साथ इसके मायने भी बदल जाते है । औपनिवेशिक ताकतों ने राष्ट्रवादी रोष को कम करने के लिए गांधी की आलोचनाओं का सर्वाधिक रचनात्मक उत्तर भी दिया। इसलिए औपनिवेशिक आधुनिकता को भारतीय राष्ट्रवाद के परिप्रेक्ष्य में देखा-समझा जाना चाहिए, जो अपनी भारतीय विशेषताओं के साथ विकसित जरूर हो रही थी, पर इसके बावजूद वह राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने की पश्चिमी विचारधारा के खिलाफ नहीं थी। यह सही है की उपनिवेशवाद ने गांधी जैसे लोगों को बढ़ने में सहायता की पर इनकी काबिलियत और दूरदृष्टि ने इतना फेमस बनाया । आतंरिक शक्ति ने ही उपनिवेशवाद से लड़ने के लिए शक्ति प्रदान की ।

Sunday, March 15, 2009

मेरे सपनों का भारत

भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में गाँधी का आगमन एक नविन घटना के रूप में देखा जाता है । गांधीजी के सपनों के भारत में पृथ्वी पर एक ऐसे स्वर्ग की परिकल्पना है जहाँ कोई न किसी का गुलाम होगा और न ही किसी दुसरे पर निर्भर होगा ।
मेरे सपनों के भारत में इस आशय को प्रकट करते हुए वो लिखते भी है ......
'' मै ऐसे भारत के लिए कोशिश करूँगा जिसमे उच्च और निम्न वर्गों का भेद नही होगा । ऐसे भारत में अस्पृश्यता का कोई अस्तित्व नही होगा । शराब और दूसरी नशीली चीजों के अभिशाप के लिए कोई स्थान नही होगा ...... उसमे महिलाओं को वही अधिकार होगे जो पुरुषों को होगे । न तो हम किसी का शोषण करेगे और न ही अपना शोषण होने देगे ।

Saturday, March 14, 2009

जिंदगी की असली उड़ान

जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है ,
आपके इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है ,
अभी तो नापी है मुट्ठी भर जमीं ,
आगे अभी सारा आसमान बाकी है ......

अहिंसा मेरे विश्वास का पहला नियम है ....

महात्मा गाँधी अहिंसा को अपना धर्म मानते थे । इसलिए असहयोग आन्दोलन के दौरान हिंसा होने पर उन्होंने आन्दोलन वापस लेने का फैसला लिया था । इस कदम की आलोचना भी हुई पर उन्होंने अहिंसा के नाम पर समझौता नही किया । असहयोग आन्दोलन उनका अपना चलाया गया आन्दोलन था अतः वापस लेने अधिकार केवल उन्हें ही था । हालांकि इससे जनता के बिच कुछ निराशा जरुर हुई लेकिन जल्द ही उनके अनुयायी गांवों में रचनात्मक कार्यों में लग गए । यही रचनात्मक कार्य अगले आन्दोलन की नींव रखने वाले थे । सच बात तो यह है की गाँधी जी के पास हमेशा कोई न कोई काम रहता ही था । वे कभी भी खाली नही बैठे ।

अहिंसा मेरे विश्वास का पहला नियम है । यही मेरे विश्वास का अन्तिम नियम भी है । ये कथन गाँधी जी का है । इन वाक्यों हमें समझ आता है की उनके लिए अहिंसा के मायने क्या थे ?

Tuesday, March 10, 2009

अंग प्रदर्शन का ज़माना .....और बिकनी


१९३१ में जब आलमआरा फ़िल्म रिलीज हुई थी तो पूरा शहर थिएटर के बाहर जमा हो गया था। यह बॉलिवुड की पहली बोलती फिल्म थी ही साथ ही हर कोई पर्दे पर फिल्म की हीरोइन जुबैदा की खूबसूरती देखना चाहता था। फिल्म की पब्लिसिटी में जुबैदा को दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत कहकर प्रचारित किया गया था। सीमित साधनों से ही पब्लिसिटी के बावजूद जुबैदा लोगों के जेहन में बस गई। निर्माता ए. ईरानी ने पब्लिसिटी में फिल्म के हीरो विट्ठल और को-स्टार पृथ्वीराज कपूर तक को जगह नहीं दी। जुबैदा को फोकस करने का भरपूर फायदा मिला। इस थिएटर पर यह फिल्म 23 सप्ताह चली। हीरोइनों की सुंदरता के बहाने दर्शकों को खींचने का सिलसिला आज तक जारी है। पुराने जमाने में निर्माता-निर्देशक हैदराबाद और दिल्ली की बदनाम गलियों में हीरोइनें तलाशते घूमते थे। गुरुदत्त ने अपने 'चौदहवीं के चांद' वहीदा रहमान को ऐसे ही खाक छानकर ढूंढा था। दिल्ली की बेबी मेहरूनीसा को उसके अब्बा इस चाह में मुंबई ले गए थे कि फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं करके जो रकम मिलेगी, उससे उनके लंबे-चौड़े परिवार को सहारा मिल जाएगा। बला की खूबसूरत मेहरूनीसा, मधुबाला बनकर शोहरत की बुलंदियों पर जा बैठी। नरगिस और मीना कुमारी ने भी उस मुश्किल दौर में हिम्मत और हुनर से अलग पहचान बनाई। हीरोइनों की बोल्ड इमेज की शुरुआत भी पचास-साठ के दशक में हुई, जब आर।के. बैनर की 'आवारा' में नरगिस ने स्विमिंग सूट पहना। नूतन जैसी गंभीर इमेज वाली अभिनेत्री भी फिल्म 'यादगार' में स्विमिंग सूट में नजर आई।
सात दशक पहले ग्लैमर इंडस्ट्री में सीधी-सादी साड़ी में नजर आने वाली मीना कुमारी, नरगिस, मधुबाला, वहीदा रहमान, माला सिन्हा, नंदा, साधना, वैजयंती माला, आशा पारिख जैसी हीरोइनों का ट्रेंड परवीन बॉबी और जीनत अमान जैसी नई सोच वाली बोल्ड हीरोइनों ने बदला। आज की हीरोइने बिकनी पहनने में या बोल्ड सिन करने में बहुत ही आगे बढ़ गई है । ऐसा लगता है की अश्लीलता की चरम स्थिति आ गई है । खैर यह ज़माना का ही प्रभाव है । हम जैसा देखना चाहते है वैसा ही फ़िल्म निर्माता परोसते है । आज जीरो साइज का ज़माना है .... अगर कोई हिरोइन इस रुल को फौलो नही कराती है तो उसका बालीवुड में टिकना मुश्किल है ।

Sunday, March 8, 2009

हेपटाइटिस-बी......

हेपेताइतिस बी बिमारी एक जानलेवा बिमारी है । भारत में हजारों लोग हर साल इससे मर जाते है । इसके मुख्य लक्षण है ....
बुखार जैसा महसूस होना, थकान, पेटदर्द, बुखार, खाने का मन न करना, डायरिया, पीली पेशाब आना आदि । हेपटाइटिस की शुरुआत में नॉजिया, जोड़ों में दर्द और थकान महसूस होती है। कु छ लोगों को बुखार और लिवर में सूजन के कारण पेट के दाएं ऊपरी हिस्से में तेज दर्द हो सकता है। कुछ लोगों में लक्षण नजर नहीं आते। एम्स के सीनियर गैस्ट्रोइंटेरोलॉजिस्ट डॉ. अनूप सराया का कहना है कि दुनिया में करीब 35 करोड़ लोगों में हेपटाइटिस-बी वायरस रहता है।


यह लिवर की बीमारी है। इसमें लिवर में सूजन आ जाती है, जिससे वह सही ढंग से काम नहीं कर पाता। लिवर इन्फेक्शन से लड़ता है। खून बहना रोकता है। खून से दवाओं और दूसरी जहरीली चीजों को अलग करता है और शरीर की जरूरी एनर्जी स्टोर करके रखता है।

कारण ......
हेपटाइटिस-बी बीमारी एक वायरस के कारण होती है। ये वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकते हैं। संक्रमित व्यक्ति के ब्लड, सीमेन और दूसरे बॉडी फ्लूइड से वायरस फैलते हैं। असुरक्षित सेक्स करने से, एक ही सूई से ड्रग्स लेने, टैटू आदि बनवाने से, हेपटाइटिस-बी के मरीज के साथ रहने, इन्फेक्टेड व्यक्ति के टूथब्रश, रेजर आदि इस्तेमाल करने से, इन्फेक्टेड प्रेग्नंट महिला से बच्चे को यह बीमारी हो सकती है। दवाओं के साइड इफेक्ट, ज्यादा शराब पीने, कुछ टॉक्सिक केमिकल, गॉल ब्लैडर या पैन्क्रियाज के डिसॉर्डर और रीयूज्ड सीरिंज, इन्फेक्टेड ब्लड से होने वाले इन्फेक्शन आदि भी इसकी वजह हो सकते हैं। मरीज से हाथ मिलाने, गले मिलने और साथ बैठने से हेपटाइटिस-बी नहीं फैलता है अतः इन सभी भ्रांतियो पर ध्यान नही देना चाहिए । इसके पक्ष में समाज में जागरूकता फैलाने की जरुरत है ।


इसके इलाज में ब्लड टेस्ट, लिवर बायोप्सी भी की जा सकती है। दवाओं के जरिए इलाज एक साल तक चलता है। जिनका लिवर डैमेज हो चुका होता है, उनका लिवर ट्रांसप्लांट करना पड़ता है। शुरुआत में ही हेपेताइतिस का टिका लगवा लेना बेहतर होता है ।

Wednesday, March 4, 2009

प्राइस अर्निंग ( पीई ) अनुपात

प्राइस अर्निंग ( पीई ) अनुपात। यह दरअसल किसी भी शेयर का वैल्यूएशन जानने के लिए सबसे प्राथमिक स्तर का मानक है। दूसरे शब्दों में इसे इस तरह समझा जा सकता है कि यह अनुपात बताता है कि निवेशक किसी शेयर के लिए उसकी सालाना आय का कितना गुना खर्च करने के लिए तैयार हैं। सीधे शब्दों में किसी शेयर का पीई अनुपात दरअसल वर्षों की संख्या है , जिनमें शेयर का मूल्य लागत का दोगुना हो जाता है।

जैसे अगर किसी शेयर का मूल्य किसी खास समय में 100 रुपए है और उसकी आय प्रति शेयर 5 रुपए है , तो इसका मतलब यह है कि उसका पीई अनुपात 20 होगा। यानी अगर सारी परिस्थितियां समान हों तो 100 रुपए के शेयर का दाम 20 साल में दोगुना हो जाएगा। यानी उस शेयर का पीई अनुपात उस खास समय में 20 है।